जीवन एक सफ़र या केवल संघर्ष...

जब मुफलिसी घर में आती है, तो लोगों के आपस का प्यार सबसे पहले खिड़की से कूद कर बाहर चला जाता है यह तो मालूम था। लेकिन बुरा वक़्त जाते - जाते अपने साथ रिश्तों की गहरी से गहरी मिठास को भी ले जाता है। यह अब जाके जाना है। कभी - कभी मन में यह ख्याल आता है, कि जाने खुदा ने भी क्या सोच कर सबकी तकदीर लिखी होगी, जो कि लोगो ऐसे दिन दिखा देती है, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। कहते हैं, कि किसी भी रेस में हार कभी उसकी नहीं होती जो कि पीछे छूट जाता है बल्कि उसकी होती है...जो गिरकर वापस नहीं उठ पाता। ठीक उसी तरह इंसान भी केवल वही है जो गिर के वापस खड़ा हो और संघर्ष करे। लेकिन जो बार- बार गिर जाये वो भला कितनी बार उठेगा। ज़िन्दगी को मैंने अपने नजरिये से देखा तो लगा कि दूसरों के लिए जीना ही असली जीवन है। पर अब ऐसा लगता है कि आखिर कोई कब तक दूसरों के लिए जीता रहेगा...? क्या अपनी ख़ुशी के लिये जीना ज़िन्दगी नहीं है। कभी सुना था कि ज़िन्दगी; मौत के सफ़र में दुखों की कड़ी धूप से बचाने वाला वो छायादार पेड़ है, जो सुखो की इतनी शीतल और ताज़ी छाया देता है कि दुखों की धूप और गरम हवाओं का एहसास तक नहीं होता। फिर यह जो सब कुछ हो रहा है वो सब क्या है........? अब जब ईश्वर से आमना सामना होगा तब बस एक यही सवाल होगा मेरे पास।

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