चढ़ता - उतरता प्यार का बुखार...(इमोशनल अत्याचार)

बिल्ली जब ढूध पीती है तो सोचती है कि उसे कोई नहीं देख रहा, लेकिन बिल्ली के खुद आँख बंद कर लेने से सच्चाई नहीं बदल जाती। हक़ीकत कुछ और ही होती है ठीक उसी तरह जब हम आपस में एक दूसरे को धोखा देते हैं तो समझते हैं कि अगले को कुछ पता नहीं चलेगा। लेकिन सच कभी छुपाये छुपा है भला....? देर सवेर ही सही, सच किसी किसी तरह लोगों के सामने ही जाता है। अब बुद्धू बक्से की बात करें और उसके रिअलिटी शोज़ की बात करें तो कुछ बिल्ली और उसकी सोच का अलग ही बोध होता है ।
बुद्धू बक्से ने लोगों को घर घुसरा बनाने के बाद एक नया तरीका निकाला है, लोगों को अपने चंगुल में फंसाने का। यू टीवी बिंदास पर आने वाले प्रोग्राम "इमोशनल अत्याचार" के पहले से लेकर अब तक के लगभग सभी एपिसोड मैंने देखे हैं । इसमें लोगों के प्यार में लायल होने का पता लगाया जाता है। प्यार में सही और गलत होने का यह अच्छा तरीका निकाला है इस चैनल वालो ने, जिसमें अब तक केवल एक केस में पोजिटिव रेस्पोंस आया, बाकी में नेगेटिवइसका मतलब केवल यही पता लगा सकते हैं कि कौन इंसान कितना सही है और कितना गलत.....| वो भी अपने एक अलग ही तरीके से जिसमें यह परोसते हैं तो केवल अश्लीलता। इससे कुछ हो या ना हो, लेकिन लोगों के सिर पर प्यार का बुखार चढ़ता है, तो कभी उतरता है और उतर कर फिर चढ़ जाता है...| इस शो के चलते लोगों का ज़िन्दगी के प्रति एक और नजरिया बन गया है कि.... आये तो बेस्ट नहीं तो नेक्स्टघर घुसरा बनाने के बाद अब अपने देखाए रास्तों पर चलाने की साजिश कर रहा है ये बुद्धू बक्सा

महिला दिवस पर भी कमाने को मजबूर है मातृत्व



महिला दिवस जो की हर वर्ष आठ मार्च को मनाया जाता है। यह दिवस महिलायों को पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिलकर चलने के लिये धन्यवाद के रूप में मनाया जाता है, साथ ही इस दिन प्रत्येक मनुष्य हर नारी के प्रति आभार प्रकट करता है, कोई साथ चलने के लिये, कोई ख्याल रखने के लिये तो कोई दुनिया में लेन के लिये। लेकिन क्या यह आभार केवल ऊँचें ओहदों पर बैठी बेटियों, महिलायों या माताओं के प्रति ही प्रकट किया जाना चाहिये? और वो मातायें, बहनें जो गरीबी से लड़ने की कोशिश में लगी रहती है, जिन्हें दीनदुनिया से कोई मतलब नहीं है। यह जानती हैं तो बस दो जून की रोटी कमाना और सामने आती परेशानियों से लड़ना, जूझना और जूझते - जूझते जीना। क्या वो महिलाएं नहीं है ??
प्रशासन को भी बस वही महिलाएं नज़र आती है जो ऊँचे ओहदों पर बैठी है और जिनका नाम जानी मानी हस्तियों में शुमार है शायद इसीलिए महिला दिवस के मौके पर रायपुर में महिला महोत्सव के नाम पर जलसे का का आयोजन किया गया उन महिलायों का क्या जिन्हें न तो महिला दिवस का मतलब मालूम है और न ही वे जानना चाहती है उन्हें तो मतलब है सिर्फ और सिर्फ अपनी मेहनत से जिसके भरोसे वें खुद भी जीती है और हम जैसों को जीने की कला भी सिखाती है असली मात्र शक्ति वही है जिनको नमन करने के लिये न तो किसी जलसे की आवश्यकता है और न ही किसी महोत्सव की। बिना किसी लाग लपेट के अंतर मन के भावों से हम करते है उन्हीं महाशक्तियों को नमन।

ज्यादा पैसे का नतीजा; कौन चाचा और काहे का भतीजा..
















क्या ज़माना है? दुनिया में पैसा क्या आया, रिश्तों का नामो निशान मिट गया। क्या रिश्ते क्या नाते...? लोगों को दिखता है तो पैसा, पैसा और बस पैसा.....; बंद मुट्ठी लिये आया था, हाथ पसारे जाना है। पैसा यहीं रह जायेगा, इन रिश्तों को ही ले जाना है। आज के दौर में जीवन में क्या - क्या नहीं देखने को मिल रहा है। वैसे तो मेरी उम्र ज्यादा नहीं है, लेकिन फिर भी अभी तक जो भी देखा समझा है, वो बाकी की ज़िन्दगी को निभाने के लिये काफी है। पैसा है तो, दुनिया आपको पूछेगी और जानेगी, आपके रिश्तों से आपको कोई नहीं जानता, और ना ही जानना चाहता है। अमीर के कुत्ते की भूख सबको दिखती है, लेकिन गरीब का दर्द न किसी को दिखता और न ही कोई उसकी तकलीफ किसी को महसूस होती है। हाय पैसा! हाय पैसा! करती और रंग बदलती इस दुनिया में, अब पैसा कमाऊं... या अपने रिश्तों के प्रति अपना फ़र्ज़ निभाऊं। पैसा कमाने जाती हूँ तो, रिश्ते नहीं निभा सकती और रिश्ते निभाने जाती हूँ तो, पैसा नहीं कमा सकती। अब क्या करूँ? मैं तो सोचती ही रह गई... और लोग रिश्तों को भूल कर पैसे कमाने के लिये आगे बढ़ गये।
और किसी को नहीं तो आज कल इमाजिन टी वी पर आने वाले राहुल दुलहनिया ले जायेगा... रियलिटी शो के मुख्य पात्र राहुल महाजन को ही ले लीजिये। चाचा की चिता अभी ठंडी भी नहीं हुई और ये जनाब चले हैं, दुल्हनिया लेने। फिर चाहे उस शादी में राहुल की दादी शरीक हो या न हो, इससे इन्हें कोई फरक नहीं पड़ता । ऐसा करें भी क्यों नहीं... क्यूंकि, जीतने वाली दुल्हन को इनाम के तौर पर मिलने वाली नकद राशि और हीरे की अंगूठियाँ दहेज़ के रूप में आखिर में अब इन्हें ही तो मिलेंगी ना। शादी का क्या है......जैसे पहले की शादी टूटने का कारण पायल रस्तोगी बनी थी। क्या पता के इस शादी के ना बचाने का कारण शायद कहीं मोनिका बेदी बन न जाएँ ।

खैर मुझे इन सब बातो से क्या लेना... मुझे तो अपने बारे में सोचना है , क्या करे ज़माना सिर्फ अपने बारे में सोचने का ही है। पैसे का क्या है? वो तो.. मैं कभी भी कमा सकती हूँ। लेकिन अगर जो एक बार अपने रिश्ते- नाते खो बैठी तो फिर कभी नहीं कमा पाऊँगी। क्यूंकि मुझे पता है कि ...
चाहे... मैं लाख कमा लूँ हीरे मोती॥
पर रखूंगी कहाँ....?? कफ़न में तो जेब ही नहीं होती।।