जिम्मेदारियां छोड़ कल्पनाशीलता में जी रहा है रायपुर का मीडिया....

रायपुर छत्तीसगढ़ की राजधानी बनने के साथ- साथ मीडिया के क्षेत्र में भी सक्रिय हो गया है। दिल्ली जो की भारत की राजधानी है, वहां से यहाँ आने के बाद मैंने ये जाना, कि यहाँ तो लोगों ने पत्रकारिता को मात्र लाल और हरे नोटों की फसल उगाने का खेत मात्र समझ रखा है। चाहे माईक पकड़ना आए या न आए, कैमरा चलाना किसे कहते है? ये पता हो या न हो, इससे इनके इरादों में कोई कमी नही आती। एक गाड़ी पर प्रेस लिखा जाना मतलब की रायपुर की सड़कों और लोगो पर दादागिरी करने का लाईसेंस मिल जाना। किसी ने इस बात की चिंता नहीं की, कि आजकल धोबी समाज के लोग भी अपनी गाड़ियों में प्रेस लिखा रहे हैं, और कहते भी हैं, कि प्रेस करते हैं तो प्रेस लिखने में क्या आपत्ति हैं ? समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से मुंह छुपाकर भी जब उनकी भूख शांत नहीं होती तो ख़ुद अपने मुंह से ही अपनी झूठी तारीफों के पुल बाँधने में भी यहाँ के लोगो को शर्म नही आती। इलेक्ट्रोनिक मीडिया का तो क्या कहना, ले दे के गिनती के चार रीजनल और दो लोकल चैनल चल रहे है। सब को चिंता है तो बस आर ओ ( vigyapan ke release order ) की। चैनल की टी आर पी बढ़ाने या ख़बरों में अपने आपको आगे रखने की कोई नहीं सोच रहा है। सब अपना पेट गले तक भरने की फिराक में लगे हैं।
सहारा तो बेसहारा है, साधना अपनी ही साधना साधने में लगा रहता है, ईटीवी में लड़किया है कि आती नही और लड़के है की जाते नही... अब बात करे जी २४ घंटे की। इसके स्टाफ वाले अपने आप को तुर्रम खान की औलाद से कम नही समझते। रोज़ दसों गलतियाँ करते हैं। छत्तीसगढ़ के कई गाँव के नाम लेने में एंकर के पसीने छूट जाते हैं यह सोचते है की बंद दरवाजो की पीछे बने रिश्ते बंद दरवाजो में ही दम तोड़ देते है लेकिन शायद ये लोग नही जानते कि बंद दरवाजो के पीछे जो आवाज़े दबाने की कोशिश की जाती है वो गूंज बनकर ऐसा तमाचा बन जाती है जो चेहरे पर पड़ने के साथ चेहरा लाल तो कर ही देती है साथ में इज्ज़त की धज्जियाँ भी उड़ा देती है। ये हाल है राष्ट्रीय चैनलों का..... अब बात करें तो, लोकल चैनलों की, इनका हाल तो और भी माशा अल्लाह है। मुख्य रूप से दो लोकल चैनल है एक तो एम् चैनल और दूसरा ग्रांड टी वी ...आधे आधे शहर में दिखने के बावजूद यहाँ टशन का खेल चल रहा है, इनके अन्दर के माहौल से पूरा रायपुर वाकिफ है। अभी हाल ही में हिन्दुस्तान टीवी के नाम से एक नया चैनल आया है जो ५४ देशो में दिखने की बात तो करता है लेकिन ख़ुद ३६ गढ़ में नही दिखता। इसकी हालात रायपुर के दूरदर्शन जैसी हो गई है जो बार-बार विज्ञापन दिखाता है कि डी टी एच लगाओ, जिसके लगते ही ख़ुद रायपुर दूरदर्शन दिखना बंद हो जाता है।
अगर इसी तरह यहाँ मीडिया कर्मियों का हाल रहा तो छत्तीसगढ़ आगे चलकर मीडिया की कामना ही नही की जा सकती। शायद ये लोग अब तक नही जान पाए की मीडिया की निष्पक्षता ही उसकी वास्तविकता और ताकत है। लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला मीडिया जगत कब छत्तीसगढ़ में अपना महत्व खोकर यहाँ से विलुप्त हो जाएगा पता ही नही चलेगा। और इसके महत्व और ताकत का इल्म शायद तब ही जान पायेगें लोग। लेकिन कहावत है न कि......अब पछताए का होत, जब चिड़िया चुग गई खेत। मीडिया की विलुप्तता के बाद उसकी चमक और उसके असर का अंदाजा लगाने का क्या फायदा......????????