अब तक हम इस किस्से को भूले भी नहीं थे की हमे गुफ्तगू करने के लिए एक और मौका मिल गया....
जहाँ रसिया राहुल महाजन बिग बॉस के बाद एक बार फिर अपने साथ पंद्रह सुंदरियों के साथ के रास लीला के अखाड़े में उतरे और जनता के सामने अपनी इस हरकत को नाम दिया " स्वयंवर".... का | इस शो में राहुल का दिल जितने की जद्दो जहद में सभी सुन्दरियों ने अपनी जान लगा दी...लेकिन राहुल का दिल डिम्पी ले गयीं | आखिरकार ६ मार्च हो धूम धाम से हुई शादी आज टूटने की कगार पर है | तो राहुल अब आगे क्या करने का इरादा है....?
अब देखना यह है, कि....इन दोनों कि हरकत और हालत से किसी को सबक मिलता है....या सब के सब.... कुएं के मेंढक बने एक ताल पर ही नाचेंगे|
पर वो इंसान ही क्या जो जीवन से हार जाये..... संघर्षों का नाम ही तो ज़िन्दगी है l जब काले घने अंधेरो के बीच कोई राह नज़र ना आये, तब सब कुछ परमात्मा पर छोड़ देना चाहिए l बावजूद इसके की जीवन को खत्म करने पर उतारू हो जाना चाहिए l जीवन तो चलते रहने का नाम है l चाहे हवाओं का रुख़ हमारी ओर हो या न हो l
ख़ैर............इन्सान की ख्वाइशों की कोई इन्तहां नहीं होती l
दो गज़ ज़मीन चाहिए, दो गज़ कफ़न के बाद l
मीडिया शुरुआत से ही लोकतंत्र का चौथा और सबसे ज्यादा प्रभावशाली और महत्वपूर्ण स्तम्भ माना गया है। जिसने हमेशा लोगों को जागरूक करने के साथ साथ सच्चाई और वास्तविकता से भी रूबरू कराया है। तभी तो मीडिया कर्मियों से सब डरते है और उनकी इज्ज़त भी करते है। लेकिन आज जो कुछ देखने सुनने को मिला उस बात ने रायपुर की पत्रकारिता को मज़ाक तो बना ही दिया साथ ही यहाँ के उद्गामी पत्रकारों शर्मसार भी किया है। शुरुआत में ५६ देशों में दिखने का दावा करते आये हिंदुस्तान चैनल को रायपुर में किसी ने नहीं देखा था। उसके बाद रायपुर में दिखने के बाद यह बाकी की ५६ देशो से गायब हो गया। इसके ऑफिस में श्रम विभाग द्वारा मारे गये छापे से पता चला की पत्रकार को यहाँ पत्रकार नहीं बल्कि बंधुआ मजदूर की तरह इस्तेमाल किया जाता था। जिसमें एक दिन की कमाई पुरे दिन के काम के अनुसार होती थी। काम नहीं तो पगार नहीं.... यह यहाँ का उसूल हुआ करता था। आज की स्थिति यह है की काम नहीं और अब चैनल भी नहीं। छोटी छोटी उम्र में बड़े बड़े ओहदों पर बैठे लोगों का तजुर्बा मुश्किल से ६ से ७ महीने का ही है। और वैसे भी रायपुर के पूरे मीडिया क्षेत्र का यही हाल है। अगर सभी गड़े मुर्दे उखाड़े जाये तो ना किसी के पास पत्रकारिता की डिग्री है और ना इसके प्रभाव की छाप।शादी ब्याह में केमरा चलाने वाले लोग यहाँ केमरामेन है तो १२ पास करके नोटों की गड्डीयां कमाने की चाह रखने वाले यहाँ पत्रकार हैं। कहने को खुद को सबसे अच्छा और तेजस्वी पत्रकार बताते है। जिनके तेज से पूरा प्रेस क्लब और रायपुर दोनों वाकिफ है. सड़क के किनारे कपड़े इस्त्री करने वाले धोबी भी अपनी गाड़ियों पर प्रेस लिखवा कर चलते है। पूछने पर कहते है कपड़े प्रेस करते है तभी तो प्रेस वाले है।
रायपुर की मीडिया के हालात देखकर तो यही शेर याद आता है- अजब तेरी किस्मत, अजब तेरा खेल, छछूंदर के सर में चमेली का तेल।
किसी को अगर उसके किये की सज़ा देनी हो तो उसे माफ़ कर दो, यही उसकी सबसे बड़ी सज़ा है, क्योंकि हमेशा गलती सहने वाले से ज्यादा गलती करने वाला अपने किये की सज़ा भुगतता है। समय ख़राब है शायद तभी इतना कुछ देखने को मिला। जब वक़्त सही होगा तब सब कुछ अपने आप सही होता चला जायेगा। यहीं मानकर बीती बातो को भुलाने के बाद आगे के बारे में सोचो और हमेशा आगे की और अग्रसर रहो। यह मूल मन्त्र मुझे मेरे गुरु से प्राप्त हुआ है उनको देखकर ही इतना कुछ सीखा है मैंने। उनका एक स्लोगन मुझे अच्छा लगता है कि
मेरा तो ऐसा मानना है की हर किसी का बुरा वक़्त आना चाहिए इससे पता तो चल जाता है कि कौन आपका अपना है और कौन पराया... लेकिन दूसरों के साथ उनके जैसा ही व्यवहार करने से उनमें और हम में क्या फरक रह जायेगा। हमें हमेशा दूसरों कि अच्छाइयों और अपनी बुराईयों को देखना चाहिए तभी अपने और दूसरे के बीच का अंतर समझ में आता है।
गुज़रता वक़्त बहुत ख़राब है, अपने आपको सम्भाल कर चलो। क्यों किसी से कोई झगड़ा मोल लेना।
मानो तो सभी अपने है। ना मानो तो लाखो कि भीड़ में तुम ही एक अकेले हो।
बुद्धू बक्से ने लोगों को घर घुसरा बनाने के बाद एक नया तरीका निकाला है, लोगों को अपने चंगुल में फंसाने का। यू टीवी बिंदास पर आने वाले प्रोग्राम "इमोशनल अत्याचार" के पहले से लेकर अब तक के लगभग सभी एपिसोड मैंने देखे हैं । इसमें लोगों के प्यार में लायल होने का पता लगाया जाता है। प्यार में सही और गलत होने का यह अच्छा तरीका निकाला है इस चैनल वालो ने, जिसमें अब तक केवल एक केस में पोजिटिव रेस्पोंस आया, बाकी में नेगेटिव। इसका मतलब केवल यही पता लगा सकते हैं कि कौन इंसान कितना सही है और कितना गलत.....| वो भी अपने एक अलग ही तरीके से जिसमें यह परोसते हैं तो केवल अश्लीलता। इससे कुछ हो या ना हो, लेकिन लोगों के सिर पर प्यार का बुखार चढ़ता है, तो कभी उतरता है और उतर कर फिर चढ़ जाता है...| इस शो के चलते लोगों का ज़िन्दगी के प्रति एक और नजरिया बन गया है कि.... आये तो बेस्ट नहीं तो नेक्स्ट। घर घुसरा बनाने के बाद अब अपने देखाए रास्तों पर चलाने की साजिश कर रहा है ये बुद्धू बक्सा।
और किसी को नहीं तो आज कल इमाजिन टी वी पर आने वाले राहुल दुलहनिया ले जायेगा... रियलिटी शो के मुख्य पात्र राहुल महाजन को ही ले लीजिये। चाचा की चिता अभी ठंडी भी नहीं हुई और ये जनाब चले हैं, दुल्हनिया लेने। फिर चाहे उस शादी में राहुल की दादी शरीक हो या न हो, इससे इन्हें कोई फरक नहीं पड़ता । ऐसा करें भी क्यों नहीं... क्यूंकि, जीतने वाली दुल्हन को इनाम के तौर पर मिलने वाली नकद राशि और हीरे की अंगूठियाँ दहेज़ के रूप में आखिर में अब इन्हें ही तो मिलेंगी ना। शादी का क्या है......जैसे पहले की शादी टूटने का कारण पायल रस्तोगी बनी थी। क्या पता के इस शादी के ना बचाने का कारण शायद कहीं मोनिका बेदी बन न जाएँ ।
खैर मुझे इन सब बातो से क्या लेना... मुझे तो अपने बारे में सोचना है , क्या करे ज़माना सिर्फ अपने बारे में सोचने का ही है। पैसे का क्या है? वो तो.. मैं कभी भी कमा सकती हूँ। लेकिन अगर जो एक बार अपने रिश्ते- नाते खो बैठी तो फिर कभी नहीं कमा पाऊँगी। क्यूंकि मुझे पता है कि ...
चाहे... मैं लाख कमा लूँ हीरे मोती॥
पर रखूंगी कहाँ....?? कफ़न में तो जेब ही नहीं होती।।
जब मुफलिसी घर में आती है, तो लोगों के आपस का प्यार सबसे पहले खिड़की से कूद कर बाहर चला जाता है यह तो मालूम था। लेकिन बुरा वक़्त जाते - जाते अपने साथ रिश्तों की गहरी से गहरी मिठास को भी ले जाता है। यह अब जाके जाना है। कभी - कभी मन में यह ख्याल आता है, कि जाने खुदा ने भी क्या सोच कर सबकी तकदीर लिखी होगी, जो कि लोगो ऐसे दिन दिखा देती है, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। कहते हैं, कि किसी भी रेस में हार कभी उसकी नहीं होती जो कि पीछे छूट जाता है बल्कि उसकी होती है...जो गिरकर वापस नहीं उठ पाता। ठीक उसी तरह इंसान भी केवल वही है जो गिर के वापस खड़ा हो और संघर्ष करे। लेकिन जो बार- बार गिर जाये वो भला कितनी बार उठेगा। ज़िन्दगी को मैंने अपने नजरिये से देखा तो लगा कि दूसरों के लिए जीना ही असली जीवन है। पर अब ऐसा लगता है कि आखिर कोई कब तक दूसरों के लिए जीता रहेगा...? क्या अपनी ख़ुशी के लिये जीना ज़िन्दगी नहीं है। कभी सुना था कि ज़िन्दगी; मौत के सफ़र में दुखों की कड़ी धूप से बचाने वाला वो छायादार पेड़ है, जो सुखो की इतनी शीतल और ताज़ी छाया देता है कि दुखों की धूप और गरम हवाओं का एहसास तक नहीं होता। फिर यह जो सब कुछ हो रहा है वो सब क्या है........? अब जब ईश्वर से आमना सामना होगा तब बस एक यही सवाल होगा मेरे पास।
क्या कभी ये जानने की कोशिश की है............कि
बंद मुठ्ठी और खुले हाथ में क्या फर्क है ?
ईश्वर के सृष्टि बनाने और मानव को जीवन देने के पीछे क्या तर्क है........... ??
ईश्वर ने हमें ज़िन्दगी; जैसा अनमोल तोहफा देने के बाद भी हम सभी को कोई न कोई एक खास खूबी देकर हमें एक दूसरे से अलग बनाकर अपनी रहमत से भी नवाज़ा है। इस सच्चाई से वाकिफ़ होते हुए भी हम उसकी इनायत की कद्र नहीं करते। आगे बढ़ने की बजाये दूसरो को पीछे धकेलने और उनसे जलने में लगे रहते है। भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में इतना वक़्त ही कहाँ है, कि हम दूसरों के बारे में ज़रा भी सोच सके। लेकिन यह सब सोचने कि बजाए हम दूसरों से जलने का काम करते है। फिर न जाने कब यह जलन अन्दर ही अन्दर कुढ़न बन जाती है और हमें पता ही नहीं चलता। ऐसे हाल में आगे बढ़ने की बात के बारे में सोच पाना भी मुश्किल हो जाता है। शायद हम जलन के मारे यह भूल जाते है कि कौआ चाहे जितना भी काक ले, कभी कोयल नहीं बन सकता।
"इंसान" सृष्टि कि सबसे बड़ी संरचना है, जिसमें सिक्के के दो पहलुओं कि तरह खूबियों के साथ साथ खामिया भी है। आज उसे यह पता नहीं शायद, कि दुनिया को जैसी नज़र का चश्मा पहन कर देखोगे; दुनिया वैसी ही नज़र आएगी। यह समाज चाहे जैसा भी हो है तो हमारा ही और इसे अच्छा या बुरा बनाना भी तो सिर्फ और सिर्फ भी हमारे ही हाथों में है।
नहीं...; क्योंकि हम हर इंसान को धोखा दे सकते है, लेकिन खुद को झांसा नहीं दे सकते।
क्या सभी खुद का लिज़लिज़े शरीर को कपड़े मात्र से ढककर अपने अस्तित्त्व को ही खत्म कर लेते है। आईने के सामने कभी गौर से देखा अपने आपको...........? या अब सिर्फ बाल कोरने और खुद को एक नज़र भर देखने के लिए आईने का इस्तेमाल कर रहा है आज का भारतीय???