डीसीसी २०१० बोलू या.....मनमोहक और रोमाचित यात्रा कहूँ???

डिफेन्स कोर्स से आये लगभग महीना होना को आया है | मगर आज भी डीसीसी की यादे यूँ ताज़ा है मानो  कल ही की तो बात है | घर आकर बड़ा ही अजीब सा लग रहा है | वहां हर बात का एक निर्धारित समय होना और यहाँ जो मन में आये वो करो | सच कहूँ तो इस बार दिल्ली में भी मन नहीं लगा | मन में उमरते - घुमरते विचारो से जब अपने आपको टटोला तब कुछ धुंधली बाते साफ़ हुई | डी सी सी में जाने के पहले मुझे सैन्य बल के बारे में इतना कुछ नही पता था, मगर वहां जाकर सैनिको के साथ वक़्त बिताना, उनके जीवन से रूबरू होना बड़ा ही रोमांचित रहा |
हमारे पूरे एक महीने के कोर्स को तीन भागो में बांटा गया था | पहले भाग में हम विशाखापत्तनम में थे | जहाँ हमने जल सेना से जूडी हुई बारीकियो को जाना | कई जलपोत देखे, फिर पनडुब्बियो में बैठ कर समुन्द्र की अंतर आत्मा से मिलने के बाद, जल सेना के दूसरे सबसे बड़े जहाज़ रणवीर की सवारी की |  
उसके बात हम सिल्चर वारांगटे गए, जहाँ हमारा थल सेना का भाग शुरू हुआ | जिसमें हमे मार्कोस की प्रशिक्षण प्रक्रिया  को दिखाया गया | उसके बाद हमारा कारवां रवाना हुआ गुवाहाटी की तरफ, जहाँ हमें भी एके - ४७ और इंसास जैसे बंदूकों को चलने का मौका मिला | उसके बाद हम बड़े चले तेजपुर की ओर, जहाँ सेनी बल की एक और कड़ी शुरू हुई, जो की थी.... वायु सेना | तेजपुर में हमे  पूरा एक दिन आसमान की गोद में बैठने को दिया गया |  आज भी जब वो दिन याद आता है जब हम ए एन - ३६ में बैठकर पूरा आन्ध्र प्रदेश देखा और फिर भारत की सबसे बड़ी नदी ब्रह्मपुत्र का आदि बिंदु देखा, कई  ऐसे गाँव में भी गया जहाँ के लोगो की जीने का सहारा एक मात्र वायु सेना ही है | 
सिक्किम के दृश्य  तो आज भी आँखों में तरोताजा हैं | कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है, लेकिन पूरा सिक्किम देखने के बाद अब यह बात झूट है कहने को दिल करता है | इंडिया चाइना बार्डर पर तो मनो हमने कोई फ़तेह हासिल करली है ऐसे विचार मन में आ रहे थे |   
और फिर अंततः हमारी इस रोमांचित यात्रा के अंतिम पड़ाव की बारी आ ही गई जो की सिलीगुड़ी था, जहाँ हमे सम्मानित किया गया, और फिर भीगी पलकों और कभी न भूलने वाली यादो के साथ सभी ने एक दुसरे को विदाई दी |