tag:blogger.com,1999:blog-18362266707663422662024-03-14T01:20:11.694-07:00हमर बानी हमर गोठhamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-24527926281165679872020-02-29T13:10:00.000-08:002020-02-29T13:12:12.330-08:00कद बड़ा हो ना हो ;किरदार बड़ा होना चाहिये !!!!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जीवन में हम जो चाहे वो हमें मिल ही जाये ऐसा जरुरी नहीं है | ज़िन्दगी बहुत से इम्तहान लेती है , कभी ज़िम्मेदारियों के चलते तो कभी परिस्थितियों के चलते अपनी इच्छाओं का गला घोंटना पड़ता है | लेकिन अपनी वाह वाई लूटने के लिये लोगों का फायदा उठाना , उन्हें धोखा देना कहाँ तक सही है ..? दूसरों से रहो ना रहो आईने में खुद से नज़रे मिलाने लायक तो रहना चाहिये | बात तो तब है कि यहाँ से जाने के बाद भी आपका नाम लोग इज़्ज़त से लें , जनाज़ा उठते वक़्त कोई गुस्से या नफरत से शामिल ना हो |<br />
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धन,दौलत ,रुपया पैसा तो हर कोई कमा सकता है , मज़ा तो तब है कि जब नाम और इज़्ज़त कमाई जाए | मेरी नज़र में जिस काम को कर के मै खुद से नज़रें ना मिला सकूँ; वो गलत है | कोशिश यही रहनी चाहिये, किसी मदद कर सको या ना कर सको , लेकिन भूल के भी किसी का दिल भी नहीं दुखाना चाहिए ,फिर जान बुझ के ऐसा करना तो दूर की बात है | </div>
hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-75960605866736493472019-06-18T03:14:00.002-07:002019-06-18T03:15:11.716-07:00मन की व्यथा... !!!!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मैं कहाँ गलत हूँ..? क्या मैं वाक़ई गलत हूँ...? मैंने क्या वाक़ई में किसी का कुछ बिगाड़ा है....? फिर क्यों मैं ही हमेशा अकेली रह जाती हूँ.... ? मेरा क्या कसूर है ....?<br />
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मेरे मन में आते-जाते कई सवाल क्यूँ मुझे विचलित कर देते है।कई सवालो के जवाब जैसे आज भी तलाश में जारी है ।और शायद इन सवालो के जवाब कभी मिले भी ना।फिर भी मन बेचैन हो जाता है।मैंने हमेशा खुद से जुड़े रिश्तो में अपना शत प्रतिशत देने की कोशिश की है, फिर क्यों कोई मुझे समझने की कोशिश नहीं करता।<br />
मैं यह भी जानती हूँ की जितना लोगो से उम्मीद रखूंगी उतनी ही तकलीफ पाऊँगी।लेकिन फिर भी मै हमेशा दूसरों को ख़ुशी देने की जदोजहद में खुद को तकलीफ देती रहू। मेरा ऐसा करना कहाँ तक सही है...?<br />
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मेरे ना कुछ कहने या ना कुछ चाहने से क्या मेरी कोई ख्वाइश नहीं हो सकती। या कोई अनकही उम्मीद रखना भी खास कर उन रिश्तो में जिन्हे आप जीते हो और हमेशा संजोय रखना चाहते हो; ग़लत है ..?<br />
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मन के उन्स को मैंने कभी जग जाहिर नहीं होने दिया। न मैंने चाहा की कोई मेरे लिए बड़े तोहफे लाये या घुमाये फिराए। चाहा तो बस इतना कि.. . कोई पास बैठे मुझे समझे , मुझे जाने। जिससे दिल की हर बात बोल सकूँ। खुल के खुद को बयां कर सकूँ लेकिन शायद औरत होने के नाते मेरी इतनी आशाये रखना गलत है। लेकिन औरत होने के चलते मेरा इंसानी दुःख या उसके दर्द के मायने बदल जायेंगे..... ? पुरुष प्रधान मुल्क का हिस्सा होना और फिर उसपे अपनी इच्छाएं रखना लोगो की नज़र में गलत हों सकता है मेरी नहीं.... ।<br />
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लेकिन जैसी नज़र का चश्मा पहन के देखोगे दुनिया वैसी ही तो दिखेगी। आज की चकाचौंध भरी दुनिया में इंसान पैसा कमाने, शौहरत बनाने और नाम कमाने में लगा पड़ा है। ऐसे में खुद से जुड़े रिश्तो में वो कितनी कड़वाहट भर रहा है ना जाने कब समझेगा। ऐसा ना हो जब तक लोग.... समझे उनके रिश्ते दम तोड़ दें।<br />
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<b>स्वामी विवेकानंद जी ने ठीक ही कहा है...... ज़रूरी नहीं के जीवन में अनेको रिश्तें हो। ज़रूरी तो यह है कि, ख़ुद से जुड़े रिश्तों में जीवन ज़रूर हो। </b></div>
hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-12776928552128812342019-05-25T22:08:00.000-07:002019-05-25T22:09:06.085-07:00The women in the City...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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नमस्कार ... कैसे हैं आप सभी .... ? बहुत दिनों के बाद वापसी हुई है मेरी अपने ही ब्लॉग पे।<br />
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इतने दिनों में किसी की बेटी और बहन से किसी की पत्नी और बहू तक का सफर तय कर लिया है। मै अब मै कहाँ रह गई हूँ ?? एक बेहद ही मशहूर फिल्मी डायलॉग है कि... एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो चुन्नी बाबू ,सुहागन के सर का ताज होता है एक चुटकी सिंदूर। कभी किसी औरत के दिल से पूछो तो वो बताएगी कि.....एक चुटकी सिन्दूर भले ही पुराने रिश्तों में कुछ नए रिश्ते ज़रूर जोड़ देता है लेकिन उसकी खुद की पहचान और कुछ कर गुज़रने के जस्बे को भी तार-तार कर के रख देता है। उसकी खुद की ज़िन्दगी मानो जैसे कहीं ग़ुम सी हो जाती है। उसके सपने अब उसके नहीं रह जाते और पति और परिवार की उम्मीदों और ख्वाहिशों को ही उसे अपने सपने, अस्तित्व की पहचान और जीना का मकसद मान के जीना पड़ता है।<br />
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आखिर कब तक औरतो को समाज के दक़िया नूसी आडम्बरों को अपना के जीना पड़ेगा। कब तक वो रीती रिवाज़ो और परपराओं के नाम से सूली चढ़ती रहेगी। आज की नारी को सीता और अनुसुइया होने के साथ साथ दुर्गा और चण्डी भी बनना पड़ेगा। शायद तब समाज और समाज के ठेकेदार औरत और उसकी गरिमा को समझेंगे। मैंने अपनी गरिमा बनाने के लिये अपना पहला कदम बढ़ा दिया है। किसी की बेटी और किसी की पत्नी होने का तमगा तो मिल ही चूका है जो आखरी साँस तक साथ रहने ही वाला है लेकिन मुझे अपनी पहचान अलग से बनानी है।<br />
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हालांकि यह कदम उठाने में मुझे बहुत समय लग गया लेकिन देर अब भी नहीं हुई है। शुरुआती कदम छोटे और कमज़ोर ज़रूर हैं लेकिन आगे चलके बड़े और मज़बूत भी मुझे यही बनाएंगे। शहर की भीड़ में आज अकेली हूँ तो क्या कल इसी भीड़ से आगे निकल के दिखाना है। मुझे किसी को कुछ साबित करके नहीं दिखाना है बस खुद को खुद के नाम से जाना जाने की इच्छा है और इतना तो सभी का हक़ है तो मेरा क्यों नहीं।<br />
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मन में उठते डर और व्यर्थ की चिंताओं को पीछे छोड़ के आगे बढ़ने का समय अब आ गया है। पहला कदम मैंने ब्लॉग पे वापसी कर के ले लिया है अब पीछे मूड़ के नहीं देखना है।<br />
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hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-80011296591181369672010-10-31T23:39:00.000-07:002010-10-31T23:39:17.960-07:00डीसीसी २०१० बोलू या.....मनमोहक और रोमाचित यात्रा कहूँ???<div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">डिफेन्स कोर्स से आये लगभग महीना होना को आया है | मगर आज भी डीसीसी की यादे यूँ ताज़ा है मानो कल ही की तो बात है | घर आकर बड़ा ही अजीब सा लग रहा है | वहां हर बात का एक निर्धारित समय होना और यहाँ जो मन में आये वो करो | सच कहूँ तो इस बार दिल्ली में भी मन नहीं लगा | मन में उमरते - घुमरते विचारो से जब अपने आपको टटोला तब कुछ धुंधली बाते साफ़ हुई | डी सी सी में जाने के पहले मुझे सैन्य बल के बारे में इतना कुछ नही पता था, मगर वहां जाकर सैनिको के साथ वक़्त बिताना, उनके जीवन से रूबरू होना बड़ा ही रोमांचित रहा |</div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">हमारे पूरे एक महीने के कोर्स को तीन भागो में बांटा गया था | पहले भाग में हम विशाखापत्तनम में थे | जहाँ हमने जल सेना से जूडी हुई बारीकियो को जाना | कई जलपोत देखे, फिर<span id="6_TRN_8z"> </span>पनडुब्बियो में बैठ कर समुन्द्र की अंतर आत्मा से मिलने के बाद, जल सेना के दूसरे सबसे बड़े जहाज़ रणवीर की सवारी की | </div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">उसके बात हम सिल्चर वारांगटे गए, जहाँ हमारा थल सेना का भाग शुरू हुआ | जिसमें हमे मार्कोस की प्रशिक्षण प्रक्रिया को दिखाया गया | उसके बाद हमारा कारवां रवाना हुआ गुवाहाटी की तरफ, जहाँ हमें भी एके - ४७ और इंसास जैसे बंदूकों को चलने का मौका मिला | उसके बाद हम बड़े चले तेजपुर की ओर, जहाँ सेनी बल की एक और कड़ी शुरू हुई, जो की थी.... वायु सेना | तेजपुर में हमे पूरा एक दिन आसमान की गोद में बैठने को दिया गया | आज भी जब वो दिन याद आता है जब हम ए एन - ३६ में बैठकर पूरा आन्ध्र प्रदेश देखा और फिर भारत की सबसे बड़ी नदी ब्रह्मपुत्र का आदि बिंदु देखा, कई ऐसे गाँव में भी गया जहाँ के लोगो की जीने का सहारा एक मात्र वायु सेना ही है | </div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">सिक्किम के दृश्य तो आज भी आँखों में तरोताजा हैं | कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है, लेकिन पूरा सिक्किम देखने के बाद अब यह बात झूट है कहने को दिल करता है | इंडिया चाइना बार्डर पर तो मनो हमने कोई फ़तेह हासिल करली है ऐसे विचार मन में आ रहे थे | </div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">और फिर अंततः हमारी इस रोमांचित यात्रा के अंतिम पड़ाव की बारी आ ही गई जो की सिलीगुड़ी था, जहाँ हमे सम्मानित किया गया, और फिर भीगी पलकों और कभी न भूलने वाली यादो के साथ सभी ने एक दुसरे को विदाई दी | </div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><br />
</div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><br />
</div>hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-23198604395026189062010-08-01T21:43:00.000-07:002010-08-01T21:43:11.045-07:00वाह! वाह! राखी.... हाय..हाय.. राहुल..<div style="text-align: justify;"><style>
</style>मैंने तो पहले ही कहा था....जोड़ियाँ आसमान में बनती है | फिर स्वयंवर के नाम पर दूसरे लोगों और अपने आप से मज़ाक किये जाने का क्या मतलब...?? राखी....क्या कहूँ इनके बारे में, पहले तो शादी के नाम पर क्या सीधी - साधी लड़की बनने का ड्रामा,जो इन्होंने किया वो काबिले तारीफ़ था | हिन्दुस्तानी लड़की की ही तरह शर्म और हया की मर्याद में रहने और होने के नाम की माला जो राखी पूरे शो के दौरान जप रही थी...उसी माला को (शो में वर के रूप में चुने गए इलेश परुजनवाला के साथ एक और शो जिसका नाम पति पत्नी और वो था) खुद इन्होंने ही तार तार करके रख दिया | उसके बाद कितनी सफाई से सोच -विचार, संस्कार और लाइफ स्टाइल बिलकुल अलग होने का कारण देकर इलेश को अपनी ज़िन्दगी से दूध में से मक्खी की तरह निकल कर फेंक दिया | तो राखी जी इसे हम आपका इलेश परुजनवाला के साथ किया गया धोखा समझे या "पब्लिसिटी स्टंट" | खैर.. <br />
अब तक हम इस किस्से को भूले भी नहीं थे की हमे गुफ्तगू करने के लिए एक और मौका मिल गया.... <br />
जहाँ रसिया राहुल महाजन बिग बॉस के बाद एक बार फिर अपने साथ पंद्रह सुंदरियों के साथ के रास लीला के अखाड़े में उतरे और जनता के सामने अपनी इस हरकत को नाम दिया " स्वयंवर".... का | इस शो में राहुल का दिल जितने की जद्दो जहद में सभी सुन्दरियों ने अपनी जान लगा दी...लेकिन राहुल का दिल डिम्पी ले गयीं | आखिरकार ६ मार्च हो धूम धाम से हुई शादी आज टूटने की कगार पर है | तो राहुल अब आगे क्या करने का इरादा है....? <br />
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अब देखना यह है, कि....इन दोनों कि हरकत और हालत से किसी को सबक मिलता है....या सब के सब.... कुएं के मेंढक बने एक ताल पर ही नाचेंगे|</div>hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-45948113778005386582010-06-20T04:02:00.001-07:002010-06-20T04:02:57.768-07:00कल आज और कल<div style="text-align: justify;">आज करीब डेढ़ साल बाद दिल्ली में वापस कदम रखा | यूँ लगा मानो ज़िन्दगी बैलगाड़ी की रफ़्तार छोड़ कर मेट्रो पर उतर गई है, मन फिर चंचल हो गया और तैयार हो गया हवा से बाते करने को | कितना कुछ बदल गया है यहाँ... लेकिन मन में एक सुकून सा है | भले ये सुकून केवल सात दिनों का है | उसके बाद फिर रायपुर वापस लौटकर बैलगाड़ी की चाल चलना है | रायपुर जाने के बाद कभी सोचा नहीं था, कि दिल्ली फिर आना नसीब होगा | सच कहूँ... तो अब रायपुर में रहने का दिल नहीं करता, कारण एक नहीं के हैं | दिल्ली आने से पहले भी मैं खुद से इसी विषय पर तर्क वितर्क कर रही थी कि, रायपुर छोड़ने का मन तो बना लिया है, पर आगे कहाँ जाना है ? और क्या करना है ? दिल्ली की गलियों में फिर से धक्के खाने है या मुंबई जाकर एक और मेट्रो में किस्मत को आज़माना है | मगर अब तक नतीजे पर नहीं पहुँच पाई हूँ..... | नतीजे पर कभी दिल नहीं पहुँचने देता है तो कभी दिमाग | किसी भी बारे में कुछ भी सोचने या करने से पहले कई तरह से अपने आपको टटोलना पड़ता है | ये बड़ा ही कठिन दौर होता है , लेकिन सभी मनुष्यों के जीवन में ऐसे दोराहे कई बार आते हैं | लड़की हूँ इसीलिये घरवालो के नज़रिए को भी देखना और समझना पड़ता है | पर अब व्यक्तिगत रूप से कुछ कर दिखाने का समय आ गया है | कुएं की मेंढकी बन कर अब मैं नहीं जीना चाहती | जीवन में कुछ कर गुजरने का ज़ज्बा जो मेरे अन्दर है उसे अब मैं सबके सामने लाना चाहती हूँ | मुझे लगता है, कि अब वो समय आ गया है | अब तक ज़िन्दगी में कई समझौते कर चुकी हूँ | अब अपना फैसला खुद लेने का वक़्त है, जिसमें मैं किसी की नहीं सुनूंगी....पर दिल और दिमाग में द्वंद्व युद्ध जारी है | मुझे भी इंतज़ार है उस नतीजे का | जिसमें ईश्वर की भी स्वीकृति हो |</div>hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-43888224210265583702010-05-24T12:02:00.000-07:002010-05-24T12:02:05.843-07:00जीना क्या जीवन से हार के......<div style="text-align: justify;">वक़्त के थेपेड़े क्या कुछ देखने और सहने पर मजबूर नहीं कर देते l कभी - कभी तो सोचने पर विवश होना पड़ता है कि ऐसा भी कुछ हो सकता है भला........? जैसे - जैसे समय का पहिया चलता है, इंसान जीवन को संघर्ष करता हुआ उसी समय में जीता है l एक इसी आस में... कि रात के बाद सवेरा जरूर होता है l मगर कोई कब तक बर्दाश करे...? एक दिन तो सब्र का बाँध टूट ही जाता है l तब ज़िन्दगी एक बोझ से कुछ कम नहीं लगती, और ऐसे में हम भगवान् को कोसते है l बावजूद यह याद रखने के, कि भगवान् तो हमेशा हमारे साथ है l बस दिखाई नहीं देते l वो भी तो जानना चाहते है, कि मुसीबत की घड़ी में हम उनपर कितनी श्रद्धा बनाये रखते है ?? वक़्त अपनी गति से चल रहा है, और उसके साथ ही साथ हम अपनी l ऐसे में सबसे ज्यादा तकलीफ तब होती है, जब बेगानों की भीड़ में हमारे अपने भी हमारा साथ छोड़ते देखाई देते है l और गैर आपका साथ निभाते है l ऐसे में मन में एक सवाल टीस मरता है, कि क्या हमारेअपने केवल सुख के साथी है, दुःख में कोई किसी का नहीं होता........? <br />
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पर वो इंसान ही क्या जो जीवन से हार जाये..... संघर्षों का नाम ही तो ज़िन्दगी है l जब काले घने अंधेरो के बीच कोई राह नज़र ना आये, तब सब कुछ परमात्मा पर छोड़ देना चाहिए l बावजूद इसके की जीवन को खत्म करने पर उतारू हो जाना चाहिए l जीवन तो चलते रहने का नाम है l चाहे हवाओं का रुख़ हमारी ओर हो या न हो l <br />
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ख़ैर............इन्सान की ख्वाइशों की कोई इन्तहां नहीं होती l <br />
दो गज़ ज़मीन चाहिए, दो गज़ कफ़न के बाद l </div>hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-81851205394166790622010-05-04T11:23:00.000-07:002010-05-05T10:52:17.830-07:00वाह! वाह! रायपुर हाय.. हाय.. मीडिया<div style="text-align: justify;"><span>वाह</span> <span>रे</span>, <span>रायपुर</span> <span>शहर</span> <span>तेरे</span> <span>क्या</span> <span>कहने</span>...? <span>जवाब</span> <span>नहीं</span> <span>तेरा।</span> <span>जिसको</span> <span>काम</span> <span>की</span> <span>ज़रूरत</span> <span>है</span> <span>उसे</span> <span>काम</span> <span>नहीं</span> <span>मिलता</span> <span>और</span> <span>जिसे</span> <span>नहीं</span> <span>है</span> <span>उसे</span> <span>आराम</span> <span>नहीं</span> <span>मिलता।</span> <span>मिनी</span> <span>बॉम्बे</span> <span>कहे</span> <span>जाने</span> <span>वाले</span> <span>रायपुर</span> <span>में</span> <span>मीडिया</span> <span>का</span> <span>आज</span> <span>इतना</span> <span>भददा</span> <span>मजाक</span> <span>उड़ा</span> <span>है</span> <span>कि</span> <span>किसी</span> <span>से</span> <span>ना</span> <span>तो</span> <span>हँसते</span> <span>बन</span> <span>रहा</span> <span>है</span> <span>और</span> <span>ना</span> <span>ही</span> <span>अपनी</span> <span>हंसी</span> <span>को</span> <span>रोकते</span> <span>बन</span> <span>रहा</span> <span>है।</span> <span>यहाँ</span> <span>भी</span> <span>अन्य</span> <span>बड़े</span> <span>शहरों</span> <span>की</span> <span>ही</span> <span>तरह</span> <span>काबिलियत</span> <span>और</span> <span>शिक्षा</span> <span>के</span> <span>ज़रिये</span> <span>नहीं</span>, <span>बल्कि</span> <span>नाम</span> <span>और</span> <span>पहुँच</span> <span>के</span> <span>बलबूते</span> <span>ही</span> <span>काम</span> <span>मिलता</span> <span>है।</span> <span>काम</span> <span>चाहे</span> <span>छोटा</span> <span>हो</span> <span>या</span> <span>बड़ा</span> <span>उसे</span> <span>पाने</span> <span>के</span> <span>लिये</span> <span>आपकी</span> <span>पहुँच</span> <span>उस</span> <span>काम</span> <span>से</span> <span>बड़ी</span> <span>होनी</span> <span>चाहिए।</span> <span>वरना</span>... <span>यहाँ</span> <span>तो</span> <span>एक</span> <span>अनार</span> <span>के</span> <span>लाखों</span> <span>बीमार</span> <span>मिलते</span> <span>हैं।</span> <span>मेहनत</span> <span>और</span> <span>संघर्ष</span> <span>देखा</span> <span>है</span> <span>किसी</span> <span>ने</span>....? <span>नहीं</span> <span>इसके</span> <span>अलावा</span> <span>आप</span> <span>जो</span> <span>चाहे</span> <span>करवा</span> <span>लो।</span><br /><span>मीडिया</span> <span>शुरुआत</span> <span>से</span> <span>ही</span> <span>लोकतंत्र</span> <span>का</span> <span>चौथा</span> <span>और</span> <span>सबसे</span> <span>ज्यादा</span> <span>प्रभावशाली</span> <span>और</span> <span>महत्वपूर्ण</span> <span>स्तम्भ</span> <span>माना</span> <span>गया</span> <span>है।</span> <span>जिसने</span> <span>हमेशा</span> <span>लोगों</span> <span>को</span> <span>जागरूक</span> <span>करने</span> <span>के</span> <span>साथ</span> <span>साथ</span> <span>सच्चाई</span> <span>और</span> <span>वास्तविकता</span> <span>से</span> <span>भी</span> <span>रूबरू</span> <span>कराया</span> <span>है।</span> <span>तभी</span> <span>तो</span> <span>मीडिया</span> <span>कर्मियों</span> <span>से</span> <span>सब</span> <span>डरते</span> <span>है</span> <span>और</span> <span>उनकी</span> <span>इज्ज़त</span> <span>भी</span> <span>करते</span> <span>है।</span> <span>लेकिन</span> <span>आज</span> <span>जो</span> <span>कुछ</span> <span>देखने</span> <span>सुनने</span> <span>को</span> <span>मिला</span> <span>उस</span> <span>बात</span> <span>ने</span> <span>रायपुर</span> <span>की</span> <span>पत्रकारिता</span> <span>को</span> <span>मज़ाक</span> <span>तो</span> <span>बना</span> <span>ही</span> <span>दिया</span> <span>साथ</span> <span>ही</span> <span>यहाँ</span> <span>के</span> <span>उद्गामी</span> <span>पत्रकारों</span> <span>शर्मसार</span> <span>भी</span> <span>किया</span> <span>है।</span> <span>शुरुआत</span> <span>में</span> <span>५६</span> <span>देशों</span> <span>में</span> <span>दिखने</span> <span>का</span> <span>दावा</span> <span>करते</span> <span>आये</span> <span>हिंदुस्तान</span> <span>चैनल</span> <span>को</span> <span>रायपुर</span> <span>में</span> <span>किसी</span> <span>ने</span> <span>नहीं</span> <span>देखा</span> <span>था।</span> <span>उसके</span> <span>बाद</span> <span>रायपुर</span> <span>में</span> <span>दिखने</span> <span>के</span> <span>बाद</span> <span>यह</span> <span>बाकी</span> <span>की</span> <span>५६</span> <span>देशो</span> <span>से</span> <span>गायब</span> <span>हो</span> <span>गया।</span> <span>इसके</span> <span>ऑफिस</span> <span>में</span> <span>श्रम</span> <span>विभाग</span> <span>द्वारा</span> <span>मारे</span> <span>गये</span> <span>छापे</span> <span>से</span> <span>पता</span> <span>चला</span> <span>की</span> <span>पत्रकार</span> <span>को</span> <span>यहाँ</span> <span>पत्रकार</span> <span>नहीं</span> <span>बल्कि</span> <span>बंधुआ</span> <span>मजदूर</span> <span>की</span> <span>तरह</span> <span>इस्तेमाल</span> <span>किया</span> <span>जाता</span> <span>था।</span> <span>जिसमें</span> <span>एक</span> <span>दिन</span> <span>की</span> <span>कमाई</span> <span>पुरे</span> <span>दिन</span> <span>के</span> <span>काम</span> <span>के</span> <span>अनुसार</span> <span>होती</span> <span>थी।</span> <span>काम</span> <span>नहीं</span> <span>तो</span> <span>पगार</span> <span>नहीं</span>.... <span>यह</span> <span>यहाँ</span> <span>का</span> <span>उसूल</span> <span>हुआ</span> <span>करता</span> <span>था।</span> <span>आज</span> <span>की</span> <span>स्थिति</span> <span>यह</span> <span>है</span> <span>की</span> <span>काम</span> <span>नहीं</span> <span>और</span> <span>अब</span> <span>चैनल</span> <span>भी</span> <span>नहीं।</span> <span>छोटी</span> <span>छोटी</span> <span>उम्र</span> <span>में</span> <span>बड़े</span> <span>बड़े</span> <span>ओहदों</span> <span>पर</span> <span>बैठे</span> <span>लोगों</span> <span>का</span> <span>तजुर्बा</span> <span>मुश्किल</span> <span>से</span> <span>६</span> <span>से</span> <span>७</span> <span>महीने</span> <span>का</span> <span>ही</span> <span>है।</span> <span>और</span> <span>वैसे</span> <span>भी</span> <span>रायपुर</span> <span>के</span> <span>पूरे</span> <span>मीडिया</span> <span>क्षेत्र</span> <span>का</span> <span>यही</span> <span>हाल</span> <span>है।</span> <span>अगर</span> <span>सभी</span> <span>गड़े</span> <span>मुर्दे</span> <span>उखाड़े </span><span>जाये</span> <span>तो</span> <span>ना</span> <span>किसी</span> <span>के</span> <span>पास</span> <span>पत्रकारिता</span> <span>की</span> <span>डिग्री</span> <span>है</span> <span>और</span> <span>ना</span> <span>इसके</span> <span>प्रभाव</span> <span>की</span> <span>छाप।शादी</span> <span>ब्याह</span> <span>में</span> <span>केमरा</span> <span>चलाने</span> <span>वाले</span> <span>लोग</span> <span>यहाँ</span> <span>केमरामेन</span> <span>है</span> <span>तो</span> <span>१२</span> <span>पास</span> <span>करके</span> <span>नोटों</span> <span>की</span> <span>गड्डीयां</span> <span>कमाने</span> <span>की</span> <span>चाह</span> <span>रखने</span> <span>वाले</span> <span>यहाँ</span> <span>पत्रकार</span> <span>हैं।</span> <span>कहने</span> <span>को</span> <span>खुद</span> <span>को</span> <span>सबसे</span> <span>अच्छा</span> <span>और</span> <span>तेजस्वी</span> <span>पत्रकार</span> <span>बताते</span> <span>है।</span> <span>जिनके</span> <span>तेज</span> <span>से</span> <span>पूरा</span> <span>प्रेस</span> <span>क्लब</span> <span>और</span> <span>रायपुर</span> <span>दोनों</span> <span>वाकिफ</span> <span>है</span>. <span>सड़क</span> <span>के</span> <span>किनारे</span> <span>कपड़े</span> <span>इस्त्री</span> <span>करने</span> <span>वाले</span> <span>धोबी</span> <span>भी</span> <span>अपनी</span> <span>गाड़ियों</span> <span>पर</span> <span>प्रेस</span> <span>लिखवा</span> <span>कर</span> <span>चलते</span> <span>है।</span> <span>पूछने</span> <span>पर</span> <span>कहते</span> <span>है</span> <span>कपड़े</span> <span>प्रेस</span> <span>करते</span> <span>है</span> <span>तभी</span> <span>तो</span> <span>प्रेस</span> <span>वाले</span> <span>है। </span><br /><span></span><span>रायपुर</span> <span>की</span> <span>मीडिया</span> <span>के</span> <span>हालात</span> <span>देखकर</span> <span>तो</span> <span>यही</span> <span>शेर</span> <span>याद </span><span>आता</span> <span>है</span>- <span>अजब</span> <span>तेरी</span> <span>किस्मत</span>, <span>अजब</span> <span>तेरा</span> <span>खेल</span>, <span>छछूंदर</span> <span>के</span> <span>सर</span> <span>में</span> <span>चमेली</span> <span>का</span> <span>तेल</span>।<br /></div>hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-87073899614619198232010-04-11T19:56:00.000-07:002010-04-12T04:53:42.440-07:00मेट्रोज़ बनाम छोटे शहर....<div style="TEXT-ALIGN: justify">एक कठिन सफर का नाम जीवन है। इस सफ़र में कई आड़े टेढ़े रास्ते आते हैं। कई बार उलझन भी होती है कि अब कौन सा रास्ता चुनें ? कभी आसानी से कट जाने वाले ढलान भरे रास्ते मिलते हैं तो कभी ऊंची चढ़ाई भी हमें तय करनी पड़ती है, हम मुसाफिर की तरह चुपचाप चल रहे होते हैं, साथी कोई मिला तो ठीक न मिला तो ठीक। अब मंजिल किस- किस को मिलेगी यह कह पाना बहुत मुश्किल है। भारत की राजधानी दिल्ली की कभी न थकने वाली दुनिया में अपनी उम्र का एक लम्बा अरसा बिताने के बाद मैं रायपुर आ गयी। यहाँ आने के बाद हर चीज़ के प्रति मेरा नजरिया बदलता गया , मानो अस्तित्व कहीं अपने आप में सिमट कर रह गया । रायपुर मुझे शुरू से ही एक छोटे कस्बे से ज्यादा कुछ नहीं लगा। मेट्रोज़ में किसी को किसी से कोई मतलब नहीं होता, सबको बस अपने काम और अपने आप से मतलब होता है। लेकिन रायपुर में आपके अपने सिवा सबको केवल आप ही से मतलब है। आपने क्या खाया, क्या पहना हुआ है, क्यों पहना है, कहा जा रहे हो, क्यूँ जा रहे हो.... वगैरह वगैरह। लाइफ का स्पेस कही खो गया है। तेज़ रफ़्तार भरी लाइफ स्टाइल के बाद यहाँ ज़िन्दगी वापस बैलगाड़ी की तरह हो गई है। चली तो चली वरना बैठो राम -भरोसे। लेकिन जहाँ इतनी खामियां है वहां कुछ अच्छाईयाँ भी तो है। लोगों से मिलने वाला अपनापन, प्यार, घरो के संस्कार, काफी कुछ जानने को मिला। कुछ पाने की चाहत में किसी के लिये कुछ करना, व्यवहार होता है, लेकिन बिना किसी चाहत के, किसी के लिये कुछ करना अपनापन और इंसानियत होता है। बस एक यही केद्र बिंदु मेरे सफर का मूल आधार है। यही मैंने अब तक की ज़िन्दगी में जाना और माना , लेकिन रायपुर में मैंने सीखा कि लोगों का इस्तेमाल कैसे किया जाता है और अपना मतलब निकल जाने के बाद दूसरे को दूध में से मक्खी की तरह कैसे निकाल कर फेंका जाता है। वैसे ये दुनिया की रीत है, पर मैंने एकदम करीब से देखा ये सब- ज़बान होते हुए भी गूंगी बनी रही, इतना सब कुछ देख लेने के बाद अब लगता है कि अपने पिता कि जन्मभूमि पर आने का मेरा फैसला कहीं गलत तो नहीं था। पापा कहते है बेटा जैसे झुण्ड से भटका पक्षी एक दिन अपने झुण्ड में वापस चला जाता है। ठीक उसी तरह छोटे- छोटे गावों और कस्बो से मेट्रोज़ में अपनी ज़िन्दगी बनाने आये लोग भी एक न एक दिन अपनी कर्मभूमि को छोड़कर अपनी जन्मभूमि में वापस ज़रूर लौटते है। लेकिन अब लगता है कि पापा यहाँ न ही आयें तो अच्छा है।<br /><br /><span style="FONT-WEIGHT: bold">किसी</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">को</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">अगर</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">उसके</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">किये</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">की</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">सज़ा </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">देनी</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">हो</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">तो</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">उसे</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">माफ़</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">कर</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">दो</span><span style="FONT-WEIGHT: bold">, </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">यही</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">उसकी</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">सबसे</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">बड़ी</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">सज़ा</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">है</span><span style="FONT-WEIGHT: bold">,</span> क्योंकि हमेशा <span style="FONT-WEIGHT: bold">गलती</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">सहने</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">वाले</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> से </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">ज्यादा</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">गलती</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">करने</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">वाला</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">अपने</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">किये</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">की</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">सज़ा</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">भुगतता</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">है</span><span style="FONT-WEIGHT: bold">। </span><span style="FONT-WEIGHT: bold"></span>समय ख़राब है शायद तभी इतना कुछ देखने को मिला। <span style="FONT-WEIGHT: bold">जब</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">वक़्त</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">सही</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">होगा</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">तब</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">सब</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">कुछ</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">अपने</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">आप</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">सही</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">होता</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">चला</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">जायेगा</span><span style="FONT-WEIGHT: bold">।</span> यहीं मानकर <span style="FONT-WEIGHT: bold">बीती</span> <span style="FONT-WEIGHT: bold">बातो</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">को</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">भुलाने</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">के</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">बाद</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">आगे</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">के</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">बारे</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">में</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">सोचो</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">और</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">हमेशा</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">आगे</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">की</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">और</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">अग्रसर</span><span style="FONT-WEIGHT: bold"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold">रहो</span><span style="FONT-WEIGHT: bold">। </span>यह मूल मन्त्र मुझे मेरे गुरु से प्राप्त हुआ है उनको देखकर ही इतना कुछ सीखा है मैंने। उनका एक स्लोगन मुझे अच्छा लगता है कि </div><div style="TEXT-ALIGN: justify">''हर मील के पत्थर पे ये इबारत लिख दो, कमज़ोर इरादों से कभी मंजिल नहीं मिलती'' ।<br /></div><span style="font-size:0;"></span>hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-16554867254520493912010-04-05T07:21:00.000-07:002010-04-11T09:51:52.225-07:00समय ही बलवान है ....<div style="text-align: justify;"><span>जब</span> <span>वक़्त</span> <span>ख़राब</span> <span>होता</span> <span>है</span> <span>तब</span> <span>कुछ</span> <span>भी</span> <span>ठीक</span> <span>नहीं</span> <span>रहता</span>, <span>ना</span> <span>इंसान</span> <span>ना</span> <span>काम।</span> <span>समय</span> <span>अपनी</span> <span>गति</span> <span>से</span> <span>ही</span> <span>चलता</span> <span>है</span> <span>और</span> <span>हमें</span> <span>लगता</span> <span>है</span> <span>कि आखिर </span><span>यह</span> <span>बुरा</span> <span>वक़्त</span> <span>कब</span> <span>जायेगा।</span> <span>बीतते</span> <span>हुए</span> <span>हर</span> <span>पल</span> <span>से</span> <span>इससे</span> <span>हमें</span> <span>सीख</span> <span>लेनी</span> <span>चाहिए</span> <span>कि</span> <span>शायद</span> <span>इससे</span> <span>भी</span> <span>कुछ</span> <span>बुरा</span> <span>हो</span> <span>सकता</span> <span>था</span>, <span>पर</span> <span>हुआ</span> <span>नहीं</span>....<span>जीवन</span> <span>के</span> <span>मूल्य</span> <span>को</span> <span>समझो</span> <span>और</span> <span>यकीन</span> <span>करो</span> <span>कि</span> <span>तुम</span> <span>भी</span> <span>दुनिया</span> <span>के</span> <span>एक</span> <span>महत्वपूर्ण </span> <span>व्यक्ति</span> <span>हो।</span> <span>ऐसा</span> <span>मान</span> <span>लेने</span> <span>से</span> <span>कभी</span> <span>भी</span> <span>कहीं</span> <span>भी</span> <span>कमज़ोर</span> <span>नहीं</span> <span>पड़ोगे।</span> <span>वो</span> <span>कहते</span> <span>है</span> <span>न</span> <span>कि</span>... <span>जीवन</span> <span>को</span> <span>केवल</span> <span>जीना</span> <span>ही</span> <span>नहीं</span>, <span>जीने</span> <span>का</span> <span>एक</span> <span>अंदाज़</span> <span>भी</span> <span>ज़रूरी</span> <span>है।</span> <span>बुरे</span> <span>वक़्त</span> <span>में</span> <span>अक्सर</span> <span>इंसान</span> <span>सबसे</span> <span>ज्यादा</span> <span>तब</span> <span>अकेला</span> <span>हो</span> <span>जाता</span> <span>है,</span> <span>जब</span> <span>वो</span> <span>खुद</span> <span>ही</span> <span>अपना</span> <span>साथ</span> <span>छोड़</span> <span>देता</span> <span>है।</span> <span>लेकिन</span> <span>हार</span> <span>कर</span> <span>कोई</span> <span>जीत</span> <span>पाया</span> <span>है</span> <span>भला</span>???<br /><span>मेरा</span> <span>तो</span> <span>ऐसा</span> <span>मानना</span> <span>है</span> <span>की</span> <span>हर</span> <span>किसी</span> <span>का</span> <span>बुरा</span> <span>वक़्त</span> <span>आना</span> <span>चाहिए</span> <span>इससे</span> <span>पता </span><span>तो</span> <span>चल</span> <span>जाता</span> <span>है</span> <span>कि</span> <span>कौन</span> <span>आपका</span> <span>अपना</span> <span>है</span> <span>और</span> <span>कौन</span> <span>पराया</span>... <span>लेकिन</span> <span>दूसरों</span> <span>के</span> <span>साथ</span> <span>उनके</span> <span>जैसा</span> <span>ही</span> <span>व्यवहार </span><span>करने</span> <span>से</span> <span>उनमें</span> <span>और</span> <span>हम</span> <span>में</span> <span>क्या</span> <span>फरक</span> <span>रह</span> <span>जायेगा</span>। <span>हमें</span> <span>हमेशा</span> <span>दूसरों</span> <span>कि</span> <span>अच्छाइयों</span> <span>और</span> <span>अपनी</span> <span>बुराईयों</span> <span>को</span> <span>देखना</span> <span>चाहिए</span> <span>तभी</span> <span>अपने</span> <span>और</span> <span>दूसरे</span> <span>के</span> <span>बीच</span> <span>का</span> <span>अंतर</span> <span>समझ</span> <span>में</span> <span>आता</span> <span>है</span>।<br /></div><br />गुज़रता वक़्त बहुत ख़राब है, अपने आपको सम्भाल कर चलो। क्यों किसी से कोई झगड़ा मोल लेना।<br />मानो तो सभी अपने है। ना मानो तो लाखो कि भीड़ में तुम ही एक अकेले हो।<br /><br /><br /><br /><span><br /></span>hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-87886244636200500612010-03-20T04:00:00.000-07:002010-04-08T21:47:48.544-07:00चढ़ता - उतरता प्यार का बुखार...(इमोशनल अत्याचार)<div style="text-align: justify;"><span>बिल्ली</span> <span>जब</span> <span>ढूध</span> <span>पीती</span> <span>है</span> <span>तो</span> <span>सोचती</span> <span>है</span> <span>कि </span> <span>उसे</span> <span>कोई</span> <span>नहीं</span> <span>देख</span> <span>रहा, </span><span>लेकिन</span> <span>बिल्ली</span> <span>के</span> <span>खुद</span> <span>आँख</span> <span>बंद</span> <span>कर</span> <span>लेने</span> <span>से</span> <span>सच्चाई</span> <span>नहीं</span> <span>बदल</span> <span>जाती।</span> <span>हक़ीकत</span> <span>कुछ</span> <span>और</span> <span>ही</span> <span>होती</span> <span>है</span> <span>।</span> <span>ठीक</span> <span>उसी</span> <span>तरह</span> <span>जब</span> <span>हम</span> <span>आपस</span> <span>में</span> <span>एक</span> <span>दूसरे</span> <span>को</span> <span>धोखा </span> <span>देते</span> <span>हैं </span> <span>तो</span> <span>समझते</span> <span>हैं </span> <span>कि</span> <span>अगले</span> <span>को</span> <span>कुछ</span> पता <span>नहीं</span> <span>चलेगा।</span> <span>लेकिन</span> <span>सच</span> <span>कभी</span> <span>छुपाये</span> <span>छुपा</span> <span>है</span> <span>भला</span>....? <span>देर</span> <span>सवेर</span> <span>ही</span> <span>सही</span>, <span>सच</span> <span>किसी</span> <span>न</span> <span>किसी</span> <span>तरह</span> <span>लोगों</span> <span>के</span> <span>सामने</span> <span>आ</span> <span>ही</span> <span>जाता</span> <span>है।</span> अब बुद्धू बक्से की बात करें और उसके रिअलिटी शोज़ की बात करें तो कुछ बिल्ली और उसकी सोच का अलग ही बोध होता है ।<br /><span>बुद्धू</span> <span>बक्से</span> <span>ने</span> <span>लोगों</span> <span>को</span> <span>घर</span> <span>घुसरा</span> <span>बनाने</span> <span>के</span> <span>बाद</span> <span>एक</span> <span>नया</span> <span>तरीका</span> <span>निकाला </span> <span>है</span>, <span>लोगों</span> <span>को</span> <span>अपने</span> <span>चंगुल</span> <span>में</span> <span>फंसाने </span> <span>का।</span> <span>यू</span> <span>टीवी</span> <span>बिंदास</span> <span>पर</span> <span>आने</span> <span>वाले</span> <span>प्रोग्राम</span> <span>"इमोशनल</span> <span>अत्याचार</span>" <span>के</span> <span>पहले</span> <span>से</span> <span>लेकर</span> <span>अब</span> <span>तक</span> <span>के</span> <span>लगभग</span> <span>सभी</span> <span>एपिसोड</span> <span>मैंने</span> <span>देखे</span> हैं । <span>इसमें</span> <span>लोगों</span> <span>के</span> <span>प्यार</span> <span>में</span> <span>लायल </span> <span>होने</span> <span>का</span> <span>पता </span> <span>लगाया</span> <span>जाता</span> <span>है।</span> <span>प्यार</span> <span>में</span> <span>सही</span> <span>और</span> <span>गलत</span> <span>होने</span> <span>का</span> <span>यह</span> <span>अच्छा</span> <span>तरीका</span> <span>निकाला</span> <span>है</span> <span>इस</span> <span>चैनल</span> <span>वालो</span> <span>ने</span>, <span>जिसमें </span> <span>अब</span> <span>तक</span> <span>केवल</span> <span>एक</span> <span>केस</span> <span>में</span> <span>पोजिटिव</span> <span>रेस्पोंस</span> <span>आया</span>, <span>बाकी</span> <span>में</span> <span>नेगेटिव</span>। <span>इसका</span> <span>मतलब</span> <span>केवल</span> <span>यही</span> पता <span>लगा</span> <span>सकते</span> <span>हैं </span> <span>कि</span> <span>कौन</span> <span>इंसान</span> <span>कितना</span> <span>सही</span> <span>है</span> <span>और</span> <span>कितना</span> <span>गलत</span>.....| <span>वो</span> <span>भी</span> <span>अपने</span> <span>एक</span> <span>अलग</span> <span>ही</span> <span>तरीके</span> <span>से</span> <span>जिसमें</span> <span>यह</span> <span>परोसते</span> <span>हैं </span><span>तो</span> <span>केवल</span> <span>अश्लीलता। </span><span>इससे</span> <span>कुछ</span> <span>हो</span> <span>या</span> <span>ना</span> <span>हो</span>,<span> लेकिन</span> <span>लोगों</span> <span>के</span> <span>सिर</span> <span>पर प्यार </span> <span>का</span> <span>बुखार</span> <span>चढ़ता</span> <span>है</span>, <span>तो</span> <span>कभी</span> <span>उतरता</span> <span>है</span> <span>और</span> <span>उतर</span> <span>कर</span> <span>फिर</span> <span>चढ़</span> <span>जाता</span> <span>है</span>...| <span>इस</span> <span>शो</span> <span>के</span> <span>चलते</span> <span>लोगों</span> <span>का</span> <span>ज़िन्दगी</span> <span>के</span> <span>प्रति</span> <span>एक</span> <span>और</span> <span>नजरिया</span> <span>बन</span> <span>गया</span> <span>है</span> <span>कि</span>.... <span>आये</span> <span>तो</span> <span>बेस्ट</span> <span>नहीं</span> <span>तो</span> <span>नेक्स्ट</span>। <span>घर</span> <span>घुसरा</span> <span>बनाने</span> <span>के</span> <span>बाद</span> <span>अब</span> <span>अपने</span> <span>देखाए</span> <span>रास्तों </span> <span>पर</span> <span>चलाने</span> <span>की</span> <span>साजिश</span> <span>कर</span> <span>रहा</span> <span>है</span> <span>ये</span> <span>बुद्धू</span> <span>बक्सा</span>।<br /></div>hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-78621470306139299262010-03-08T05:49:00.000-08:002010-03-08T22:59:45.944-08:00महिला दिवस पर भी कमाने को मजबूर है मातृत्व<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXi7AnYT6YrWxdBZ8yEMzWWzlx8rV1zIFVqmJGN_5hsQ-x6dQD-UlRkPAUJfGOP_j8BnDmDaS-zko1hjmZd6hw894AQyBum0qX-GyJGccaA3Ju0UZmT95VO2DfGO8N8wPotjfc-uEQ7qbq/s1600-h/bittu+snap+of+World+Womens+Day+copy.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5446519325360462306" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 279px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXi7AnYT6YrWxdBZ8yEMzWWzlx8rV1zIFVqmJGN_5hsQ-x6dQD-UlRkPAUJfGOP_j8BnDmDaS-zko1hjmZd6hw894AQyBum0qX-GyJGccaA3Ju0UZmT95VO2DfGO8N8wPotjfc-uEQ7qbq/s320/bittu+snap+of+World+Womens+Day+copy.jpg" border="0" /></a><br /><br /><div align="justify">महिला दिवस जो की हर वर्ष आठ मार्च को मनाया जाता है। यह दिवस महिलायों को पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिलकर चलने के लिये धन्यवाद के रूप में मनाया जाता है, साथ ही इस दिन प्रत्येक मनुष्य हर नारी के प्रति आभार प्रकट करता है, कोई साथ चलने के लिये, कोई ख्याल रखने के लिये तो कोई दुनिया में लेन के लिये। लेकिन क्या यह आभार केवल ऊँचें ओहदों पर बैठी बेटियों, महिलायों या माताओं के प्रति ही प्रकट किया जाना चाहिये? और वो मातायें, बहनें जो गरीबी से लड़ने की कोशिश में लगी रहती है, जिन्हें दीनदुनिया से कोई मतलब नहीं है। यह जानती हैं तो बस दो जून की रोटी कमाना और सामने आती परेशानियों से लड़ना, जूझना और जूझते - जूझते जीना। क्या वो महिलाएं नहीं है ?? </div><div align="justify">प्रशासन को भी बस वही महिलाएं नज़र आती है जो ऊँचे ओहदों पर बैठी है और जिनका नाम जानी मानी हस्तियों में शुमार है शायद इसीलिए महिला दिवस के मौके पर रायपुर में महिला महोत्सव के नाम पर जलसे का का आयोजन किया गया उन महिलायों का क्या जिन्हें न तो महिला दिवस का मतलब मालूम है और न ही वे जानना चाहती है उन्हें तो मतलब है सिर्फ और सिर्फ अपनी मेहनत से जिसके भरोसे वें खुद भी जीती है और हम जैसों को जीने की कला भी सिखाती है असली मात्र शक्ति वही है जिनको नमन करने के लिये न तो किसी जलसे की आवश्यकता है और न ही किसी महोत्सव की। बिना किसी लाग लपेट के अंतर मन के भावों से हम करते है उन्हीं महाशक्तियों को नमन। </div><div align="justify"></div><span style="font-size:0;"></span>hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-18727981644780991192010-03-06T09:28:00.000-08:002010-03-22T07:14:29.498-07:00ज्यादा पैसे का नतीजा; कौन चाचा और काहे का भतीजा..<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhGin5Q_cucbb8tsHvrh0Ek9thJ1GI8hXZbvdXYcopLRyEmQ4m1Ue6vEsyyY8AIAezA64yEeccjeufLifeyyhf7fbvfQ_hw3JAWC8TBtj2-rRVTkp-x3uQGlhjBxE2-iBQu7rzRKqf496oO/s1600-h/Rahul_Dimpy1%5B1%5D.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5445608911012940626" style="margin: 0px 0px 10px 10px; float: right; width: 320px; height: 266px;" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhGin5Q_cucbb8tsHvrh0Ek9thJ1GI8hXZbvdXYcopLRyEmQ4m1Ue6vEsyyY8AIAezA64yEeccjeufLifeyyhf7fbvfQ_hw3JAWC8TBtj2-rRVTkp-x3uQGlhjBxE2-iBQu7rzRKqf496oO/s320/Rahul_Dimpy1%5B1%5D.jpg" border="0" /></a><br /><br /><br /><br /><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhR6N92vaCdlskzkCJk4d3qnh9pzApzI8DN9ryOFtQ4IiZ7I0_L7KqsIaW1ZDCz37O_91C7JuXgHRQTuh-_mPvCU0AUcsAphBwgDM45HsLs737Xk2OEhb84T-Ct0W5yT-FNoM-QhQxHzj2j/s1600-h/4b92975995cc1Rahul%20Mahajan%20Swayamvar-image%5B1%5D.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5445608443634192546" style="margin: 0px 0px 10px 10px; float: right; width: 207px; height: 164px;" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhR6N92vaCdlskzkCJk4d3qnh9pzApzI8DN9ryOFtQ4IiZ7I0_L7KqsIaW1ZDCz37O_91C7JuXgHRQTuh-_mPvCU0AUcsAphBwgDM45HsLs737Xk2OEhb84T-Ct0W5yT-FNoM-QhQxHzj2j/s320/4b92975995cc1Rahul%2520Mahajan%2520Swayamvar-image%5B1%5D.jpg" border="0" /></a><br /><br /><br /><br /><br /><div><br /><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBmny_0OzWiiP4Sqz7dX4OntjAxDCSXKsAo-rfsC3CGmlR4_o1uXgY4mrP5SQ8GKYoFzyO80brKJIUkbhxJICuqEqIIk9GuJiiRocA1lXK0cDo1m6VT-DutA-pHFHYLrSjdRK8CubenO08/s1600-h/images%5B6%5D.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5445608244158726370" style="margin: 0px 10px 10px 0px; float: left; width: 102px; height: 105px;" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBmny_0OzWiiP4Sqz7dX4OntjAxDCSXKsAo-rfsC3CGmlR4_o1uXgY4mrP5SQ8GKYoFzyO80brKJIUkbhxJICuqEqIIk9GuJiiRocA1lXK0cDo1m6VT-DutA-pHFHYLrSjdRK8CubenO08/s320/images%5B6%5D.jpg" border="0" /></a><br /><br /><br /><br /><div>क्या ज़माना है? दुनिया में पैसा क्या आया, रिश्तों का नामो निशान मिट गया। क्या रिश्ते क्या नाते...? लोगों को दिखता है तो पैसा, पैसा और बस पैसा.....; बंद मुट्ठी लिये आया था, हाथ पसारे जाना है। पैसा यहीं रह जायेगा, इन रिश्तों को ही ले जाना है। आज के दौर में जीवन में क्या - क्या नहीं देखने को मिल रहा है। वैसे तो मेरी उम्र ज्यादा नहीं है, लेकिन फिर भी अभी तक जो भी देखा समझा है, वो बाकी की ज़िन्दगी को निभाने के लिये काफी है। पैसा है तो, दुनिया आपको पूछेगी और जानेगी, आपके रिश्तों से आपको कोई नहीं जानता, और ना ही जानना चाहता है। अमीर के कुत्ते की भूख सबको दिखती है, लेकिन गरीब का दर्द न किसी को दिखता और न ही कोई उसकी तकलीफ किसी को महसूस होती है। हाय पैसा! हाय पैसा! करती और रंग बदलती इस दुनिया में, अब पैसा कमाऊं... या अपने रिश्तों के प्रति अपना फ़र्ज़ निभाऊं। पैसा कमाने जाती हूँ तो, रिश्ते नहीं निभा सकती और रिश्ते निभाने जाती हूँ तो, पैसा नहीं कमा सकती। अब क्या करूँ? मैं तो सोचती ही रह गई... और लोग रिश्तों को भूल कर पैसे कमाने के लिये आगे बढ़ गये।<br />और किसी को नहीं तो आज कल इमाजिन टी वी पर आने वाले राहुल दुलहनिया ले जायेगा... रियलिटी शो के मुख्य पात्र राहुल महाजन को ही ले लीजिये। चाचा की चिता अभी ठंडी भी नहीं हुई और ये जनाब चले हैं, दुल्हनिया लेने। फिर चाहे उस शादी में राहुल की दादी शरीक हो या न हो, इससे इन्हें कोई फरक नहीं पड़ता । ऐसा करें भी क्यों नहीं... क्यूंकि, जीतने वाली दुल्हन को इनाम के तौर पर मिलने वाली नकद राशि और हीरे की अंगूठियाँ दहेज़ के रूप में आखिर में अब इन्हें ही तो मिलेंगी ना। शादी का क्या है......जैसे पहले की शादी टूटने का कारण पायल रस्तोगी बनी थी। क्या पता के इस शादी के ना बचाने का कारण शायद कहीं मोनिका बेदी बन न जाएँ ।<br /><br />खैर मुझे इन <span class="">सब </span>बातो से क्या लेना... मुझे तो अपने बारे में सोचना है , क्या करे ज़माना सिर्फ अपने बारे में सोचने का ही है। पैसे का क्या है? वो तो.. मैं कभी भी कमा सकती हूँ। लेकिन अगर जो एक बार अपने रिश्ते- नाते खो बैठी तो फिर कभी नहीं कमा पाऊँगी। क्यूंकि मुझे पता है कि ...<br />चाहे... मैं लाख कमा लूँ हीरे मोती॥<br />पर रखूंगी कहाँ....?? कफ़न में तो जेब ही नहीं होती।। </div></div></div>hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-81952205684614757072010-02-24T18:44:00.000-08:002010-03-08T23:07:37.696-08:00भरोसा या विश्वासघात, भावनाओं का भददा मजाक...<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIHk3GozVtmXEX3pr61fM7H1GhPBOowISuQ5-ZwpRFBZt1gOiNRaSEaQkrWmbz7b7WMDkPq-wrbZgSS1_tMwSp6I9D2zQxTQcc3gA9-kP9rC7yToVUYcZ4BPHtIsq7BY55ECeeexplJtfu/s1600-h/Sangeeta.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5444297022632294530" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 154px; CURSOR: hand; HEIGHT: 200px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIHk3GozVtmXEX3pr61fM7H1GhPBOowISuQ5-ZwpRFBZt1gOiNRaSEaQkrWmbz7b7WMDkPq-wrbZgSS1_tMwSp6I9D2zQxTQcc3gA9-kP9rC7yToVUYcZ4BPHtIsq7BY55ECeeexplJtfu/s200/Sangeeta.jpg" border="0" /></a><br /><div><div>रो कर पूछने और हँसकर उड़ा देने वाले लोगों की इस दुनिया में किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता। कहने को तो यहाँ कई रिश्ते है जैसे- माँ, बाप, भाई और बहन। इनके अलावा भी हम कई रिश्तों में बंधे है लेकिन इतने रिश्तों की भीड़ होने के बावजूद हम दुनिया में बिलकुल अकेले है। इस बात का इल्म हम सभी को एक -न- एक दिन ज़रूर होता है। कोई आपका नहीं होता आपका साथ केवल आपको ही निभाना पड़ता है। ज़िन्दगी; वक़्त की कसौटी पर बिछी शतरंज की उस बिसाद की तरह है, जिसमें खुद ज़िन्दगी ही हमें मिले रिश्तों को रिश्तों को गोटियों की मिसाल देकर हमें समाज के नियमों से झूझने के लिये छोड़ देती है<span class="">। </span>अब तो यह हाल है कि किसी को दिल कि बात बताने से पहले सौ बार सोचना पड़ता है। वो कहते है ना... कि दूध का जला हुआ छाज को भी फूंक फूंक कर पीता है। बावजूद इसके कि कुछ रिश्ते वास्तविकता से कोसो दूर होते <span class="">है। और जिन्हें जिन्दादिली से जिया जाता है </span>कभी कभी सोचने को मजबूर होना पड़ता है, कि ज़िन्दगी को हम चलाते है या ज़िन्दगी हमें चलाती है <span class="">अक्सर परिस्थितयां </span>ऐसी भी हो जाती है की मर्ज़ी हो या ना हो, ज़िन्दगी के हाथों की कठपुतली सभी को बनाना पढ़ जाता है। लेकिन क्या किसी की भावनायो का कोई मोल नहीं है। भगवान ने हमें जितनी सांसे दी है उससे कहीं ज्यादा भावनाएं दी है। जितना समझाने की कोशिश करती हूँ, उतना ही उलझती चली जाती हूँ। जिंदा लाश की तरह जीवन जीने से अच्छा है कि कठपुतली <span class="">बन निशब्द खड़ी </span>सब देखती रहूँ।</div></div>hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-13050014788658586292010-02-16T06:13:00.000-08:002010-03-10T10:19:49.112-08:00जीवन एक सफ़र या केवल संघर्ष...जब मुफलिसी घर में आती है, तो लोगों के आपस का प्यार सबसे पहले खिड़की से कूद कर बाहर चला जाता है यह तो मालूम था। लेकिन बुरा वक़्त जाते - जाते अपने साथ रिश्तों की गहरी से गहरी मिठास को भी ले जाता है। यह अब जाके जाना है। कभी - कभी मन में यह ख्याल आता है, कि जाने खुदा ने भी क्या सोच कर सबकी तकदीर लिखी होगी, जो कि लोगो ऐसे दिन दिखा देती है, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। कहते हैं, कि किसी भी रेस में हार कभी उसकी नहीं होती जो कि पीछे छूट जाता है बल्कि उसकी होती है...जो गिरकर वापस नहीं उठ पाता। ठीक उसी तरह इंसान भी केवल वही है जो गिर के वापस खड़ा हो और संघर्ष करे। लेकिन जो बार- बार गिर जाये वो भला कितनी बार उठेगा। ज़िन्दगी को मैंने अपने नजरिये से देखा तो लगा कि दूसरों के लिए जीना ही असली जीवन है। पर अब ऐसा लगता है कि आखिर कोई कब तक दूसरों के लिए जीता रहेगा...? क्या अपनी ख़ुशी के लिये जीना ज़िन्दगी नहीं है। कभी सुना था कि ज़िन्दगी; मौत के सफ़र में दुखों की कड़ी धूप से बचाने वाला वो छायादार पेड़ है, जो सुखो की इतनी शीतल और ताज़ी छाया देता है कि दुखों की धूप और गरम हवाओं का एहसास तक नहीं होता। फिर यह जो सब कुछ हो रहा है वो सब क्या है........? अब जब ईश्वर से आमना सामना होगा तब बस एक यही सवाल होगा मेरे पास।hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-89918535985972502792010-02-14T23:15:00.000-08:002010-03-10T10:17:25.051-08:00जलन नहीं बराबरी करो..क्या कभी ये जानने की कोशिश की है............कि<br />बंद मुठ्ठी और खुले हाथ में क्या फर्क है ?<br />ईश्वर <span class="">के </span>सृष्टि बनाने और मानव को <span class="">जीवन </span>देने के पीछे क्या तर्क <span class="">है........... ??</span><br /><br />ईश्वर ने हमें ज़िन्दगी; जैसा अनमोल तोहफा देने के बाद भी हम सभी को कोई न कोई एक खास खूबी देकर हमें एक दूसरे से अलग बनाकर अपनी रहमत से भी नवाज़ा है। इस सच्चाई से वाकिफ़ होते हुए भी हम उसकी इनायत की कद्र नहीं <span class="">करते। </span>आगे बढ़ने की बजाये दूसरो को पीछे धकेलने और उनसे जलने में लगे रहते है। भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में इतना वक़्त ही कहाँ है, कि हम दूसरों के बारे <span class="">में </span>ज़रा भी सोच सके। लेकिन यह सब सोचने कि बजाए <span class="">हम </span>दूसरों से जलने का काम करते है। फिर न जाने कब यह जलन अन्दर ही अन्दर <span class="">कुढ़न </span>बन जाती है और हमें पता ही नहीं चलता। ऐसे हाल में आगे बढ़ने की बात के बारे में सोच पाना भी मुश्किल हो जाता है। शायद हम जलन के मारे यह भूल जाते है कि <span class="">कौआ </span><span class="">चाहे </span>जितना भी काक ले, कभी कोयल नहीं बन <span class="">सकता। </span><br /><p><span class="">"इंसान" सृष्टि कि सबसे बड़ी संरचना है, जिसमें सिक्के के दो पहलुओं कि तरह खूबियों के साथ साथ खामिया भी है। आज उसे यह पता नहीं शायद, कि दुनिया को जैसी नज़र का चश्मा पहन कर देखोगे; दुनिया वैसी ही नज़र आएगी। यह समाज चाहे जैसा भी हो है तो हमारा ही और इसे अच्छा या बुरा बनाना भी तो सिर्फ और सिर्फ भी हमारे ही हाथों में है। </span></p><p></p>hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-10003184447806794672010-02-14T01:49:00.000-08:002010-03-10T10:12:56.334-08:00कहाँ है भारत देश के वासी.....<div align="justify">सच और झूठ की इस कशमकश में इंसान क्यों दूसरे इंसान का दुश्मन बनता चला जा रहा है। क्यों आज एक इंसान किसी दूसरे इंसान का भला होता नहीं देख पा रहा है। ऐसे में इंसानियत के चोगे में खुद को लपेट कर, क्या खुद को इंसान मान लेने से कपड़ो के अन्दर का हमारा नंगापन ढक जायेगा..?<br />नहीं...; क्योंकि हम हर इंसान को धोखा दे सकते है, लेकिन खुद को झांसा नहीं दे सकते।<br />क्या सभी खुद का लिज़लिज़े शरीर को कपड़े मात्र से ढककर अपने अस्तित्त्व को ही खत्म कर लेते है। आईने के सामने कभी गौर से देखा अपने आपको...........? या अब सिर्फ बाल कोरने और खुद को एक नज़र भर देखने के लिए आईने का इस्तेमाल कर रहा है आज का भारतीय???<br /></div><span class=""></span><div align="justify">संस्कारो की आड़ में स्वयं को अभद्रता की आग में झोंक देने के बाद भी हम कैसे कह सकते है, कि हम भारत देश के निवासी है। जहाँ के वासियों को सिर्फ उनकी मानवता के लिये ही जाना जाता है। यह वही भारत देश है जिसके रिति - रिवाजों, संस्कारो और संस्कृतियों का डंका सारी दुनिया में बजता रहा है। कृषि प्रधान देश होने के बावजूद भले ही यहाँ का निवासी निरक्षरता के अंधेरों में रहा हो, लेकिन बेरोज़गारी के थपेड़ो से हमेशा बचा रहा है यहाँ पत्थरो को भी भगवान का दर्जा दिया जाता है, तो वहीँ अतिथियों को देवों सा मान मिलता है। लेकिन अब यह सब कहीं ना कहीं किताब में कहानियों की तरह दब के रह गया है। या फिर यूँ कहें कि पश्चिमी सभ्यता ने इसे अपने कदमों तले रौंद कर रख दिया है। आज का भारती केवल खुद को दूसरों से बेहतर बताना और दिखाना चाहता है। वह केवल पश्चिमी सभ्यता के वशीभूत होने की पुरजोर कोशिश में लगा है। लेकिन आज भी उसे पश्चिमी देशो की प्रगति का मूल मंत्र मालूम नहीं है। <em>सिर्फ पाश्चात्य कपड़े पहन कर कोई विदेशी नहीं हो जाता </em>आवश्यकता है मानसिकता को बदलने और मनोबल को बढ़ाने की, या फिर टटोलने और तलाशने के बाद खूबियों की तरह अपने अन्दर उतारने की..... आने वाली पीढ़ी को कैसे भारत से रूबरू करवाना है अब यह तो बस हम भारतीयों के ही हाथो में है। मैंने इस ब्लॉग में लिख कर आप को आप ही के सामने रख कर अपने फ़र्ज़ को पूरा किया है। आप इसे किस नज़रिए से देखते है यह तो आप पर ही है।</div>hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-207456264387581742009-11-21T02:46:00.000-08:002010-03-10T10:04:04.514-08:00जिम्मेदारियां छोड़ कल्पनाशीलता में जी रहा है रायपुर का मीडिया....<div align="justify">रायपुर छत्तीसगढ़ की राजधानी बनने के साथ- साथ मीडिया के क्षेत्र में भी सक्रिय हो गया है। दिल्ली जो की भारत की राजधानी है, वहां से यहाँ आने के बाद मैंने ये जाना, कि यहाँ तो लोगों ने पत्रकारिता को मात्र लाल और हरे नोटों की फसल उगाने का खेत मात्र समझ रखा है। चाहे माईक पकड़ना आए या न आए, कैमरा चलाना किसे कहते है? ये पता हो या न हो, इससे इनके इरादों में कोई कमी नही आती। एक गाड़ी पर प्रेस लिखा जाना मतलब की रायपुर की सड़कों और लोगो पर दादागिरी करने का लाईसेंस मिल जाना। किसी ने इस बात की चिंता नहीं की, कि आजकल धोबी समाज के लोग भी अपनी गाड़ियों में प्रेस लिखा रहे हैं, और कहते भी हैं, कि प्रेस करते हैं तो प्रेस लिखने में क्या आपत्ति हैं ? समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से मुंह छुपाकर भी जब उनकी भूख शांत नहीं होती तो ख़ुद अपने मुंह से ही <span class="">अपनी झूठी</span> तारीफों के पुल बाँधने<span class=""> में भी </span>यहाँ के लोगो को शर्म नही आती। इलेक्ट्रोनिक मीडिया का तो क्या कहना, ले दे के गिनती के चार रीजनल और दो लोकल चैनल चल रहे है। सब को चिंता है तो बस आर<span class=""> ओ ( vigyapan ke release order ) की। चैनल की टी आर पी बढ़ाने या ख़बरों में अपने आपको आगे रखने की कोई नहीं सोच रहा है। सब अपना पेट गले तक भरने की फिराक में लगे हैं। </span><br /><span class=""></span>सहारा तो बेसहारा है, साधना अपनी ही साधना साधने में लगा रहता है, ईटीवी में लड़किया है कि आती नही और लड़के है की जाते नही... अब बात करे जी २४ घंटे की। इसके स्टाफ वाले अपने आप को तुर्रम खान की औलाद से कम नही समझते। रोज़ दसों गलतियाँ करते हैं। छत्तीसगढ़ के कई गाँव के नाम लेने में एंकर के पसीने छूट जाते हैं यह सोचते है की बंद दरवाजो की पीछे बने रिश्ते बंद दरवाजो में ही दम तोड़ देते है लेकिन शायद ये लोग नही जानते कि बंद दरवाजो के पीछे जो आवाज़े दबाने की कोशिश की जाती है वो गूंज बनकर ऐसा तमाचा बन जाती है जो चेहरे पर पड़ने के साथ चेहरा लाल तो कर ही देती है साथ में इज्ज़त की धज्जियाँ भी उड़ा देती है। ये हाल है राष्ट्रीय चैनलों का..... अब बात करें तो, लोकल चैनलों की, इनका हाल तो और भी माशा अल्लाह है। मुख्य रूप से दो लोकल चैनल है एक तो एम् चैनल और दूसरा ग्रांड टी वी ...आधे आधे शहर में दिखने के बावजूद यहाँ टशन का खेल चल रहा है, इनके अन्दर के माहौल से पूरा रायपुर वाकिफ है। अभी हाल ही में हिन्दुस्तान टीवी के नाम से एक नया चैनल आया है जो ५४ देशो में दिखने की बात तो करता है लेकिन ख़ुद ३६ गढ़ में नही दिखता। इसकी हालात रायपुर के दूरदर्शन जैसी हो गई है जो बार-बार विज्ञापन दिखाता है कि डी टी एच लगाओ, जिसके लगते ही ख़ुद रायपुर दूरदर्शन दिखना बंद हो जाता है।<br />अगर इसी तरह यहाँ मीडिया कर्मियों का हाल रहा तो छत्तीसगढ़ आगे चलकर मीडिया की कामना ही नही की जा सकती। शायद ये लोग अब तक नही जान पाए की <strong><span style="color:#ff6666;">मीडिया की निष्पक्षता ही उसकी</span></strong> <strong><span style="color:#ff6666;">वास्तविकता और ताकत है।</span></strong> लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला मीडिया जगत कब छत्तीसगढ़ में अपना महत्व खोकर यहाँ से विलुप्त हो जाएगा पता ही नही चलेगा। और इसके महत्व और ताकत का इल्म शायद तब ही जान पायेगें लोग। लेकिन कहावत है न कि......अब पछताए का होत, जब चिड़िया चुग गई खेत। मीडिया की विलुप्तता के बाद उसकी चमक और उसके असर का अंदाजा लगाने का क्या फायदा......????????</div>hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-17449168060215427062009-11-17T22:33:00.000-08:002009-11-17T23:17:51.176-08:00बुद्धू बक्सा के नाम पर भारतीयों को घर घुसरा बनाने की साजिश...बुद्धू बक्सा यानि कि लोगो को आसानी से बुद्धू बना कर अपने वश में कर लेने वाला जादुई बक्सा जिसके न तो असर को कम किया जा सकता है और ना ही उसके दूरगामी असर से बचा जा सकता है। ये जादुई पिटारा ऐसा है जो सब को सभी की उम्र और सभी के अंदाज़ में उन्हें अपनी ओर खींचता है। एक डोर से जैसे पतंग खींची चली जाती है उसी तरह इसके बिछाए जाल से निकला नही जा सकता। एक तरफ़ बच्चे कार्टून देखकर खुश होते है तो वहीं लड़के-लड़किया फैशन के नए प्रचलन को देखकर अपने ऊपर भी लागू करती है। महिलाये भी इससे मोहित होने से बच नही पाती है। किस कलाकार की शादी कितनी बार हुई, किसकी सास ने बहू पर साजिश का कौन सा वार किया, उनका पूरा दिन यही हिसाब-किताब करने में चला जाता है। जहाँ एक तरफ़ शाम को थक हारकर घर आए पति से पानी पूछकर पूरे दिन का हाल जान उनकी थकान दूर करने के लिए उनके साथ चाय की चुस्किया लेते हुए प्यार के दो मीठे बोल बोलती थी, वहीँ आज के समय में पानी देना तो दूर उनकी ओर निहारती तक नही है। पति के कुछ कहने या पूछने पर सीरियल में ब्रेक आने का बहाना करती है। पति के भड़क जाने पर उनका दो टूक सा जवाब होता है कि - मेरी दो पल की खुशी भी बर्दाश्त नही कर सकते। ऐसे में भारतीय संस्कृति जहाँ विलुप्त होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा । ये लड़किया फैशन की वशीभूत होकर दूसरी ओर लडको को भी सम्मोहित कर रही हैं। दूर दर्शन तो आज भी वहीँ खड़ा है, जहाँ से उसने शुरुआत की थी, उसके सामने पैदा हुए और चलना सीखे चैनलों ने लम्बी लम्बी छलांग भर इतनी दूर निकल गए हैं कि दूरदर्शन वहां तक सोच भी नहीं सकता। खैर दूरदर्शन अश्लीलता में भी पीछे है। संस्कृति की फिक्र है उसे आज भी। लेकिन बाकी के चैनल अपनी टी आर पी बढ़ाने के लिए अश्लीलता की हदों को काफी पीछे छोड़ चुके हैं। चैनलों की इसी साज़िश से लगता है कि हमें घरघुसरा बनाने की साजिशें हो रही हैं और हमें इससे बचना ही होगा।hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-68181987270906469792009-11-17T21:37:00.000-08:002010-03-09T10:15:19.899-08:00एक नारी की ज़िन्दगी का सफर और उसके हमसफ़र...इस पथरीले सफर में ज़िन्दगी की राहों में न जाने कितने ही मोड़ आते है। नारी कितनी बार वक्त और हालात के हाथो मजबूर होकर अपनों के ही सामने घुटने टेक कर ज़िन्दगी को एक बोझ समझकर ढोती रहे। अब तक के इतिहास में न जाने कितनी नारियों ने कितने समझौतों की आग में अपने आप को न जाने कितनी बार झोक दिया है। ऐसे में नारी के ज़हन में कुछ ऐसी बातें आती है जो वो किसी से नही कहती लेकिन अपने आप से हमेशा पुछा करती है जब वो दुनिया की चकाचौंध में भी ख़ुद को अकेला समझने लगती है। कुछ लोग माँ - बाप के बिना ख़ुद को अकेला मानते है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते है जो माँ और बाप दोनों के होते हुए भी अपने आप को अनाथ से कमतर नही समझते। ये कहानी ऐसी ही एक लड़की की है जिसने कई बार ऐसे समझौते भी किए है जिन्हें करने के लिए उसका ज़मीर इज़ाज़त नही देता। और इन्ही में से ही एक है। यह लड़की कहती है.................<br />आख़िर कितनी बार जीवन में सामने आए कठिन मोड़ो से मुह मोड़ कर मैं अपनी राह बदलू ? कभी कोई समझने की कोशिश क्यों नही करता। और सबसे ज्यादा तकलीफ तब होती है जब मुझे मेरे माँ बाप ही नही समझते। हमारे माँ बाप भी तो इसी उम्र से गुजरे है जिस उम्र के पड़ाव पर आज मैं खड़ी हूँ। फ़िर क्यूँ वो भी मुझे समझने की कोशिश नही करते। मन में उमड़ते घुमड़ते और विचलित कर देने वाले सवाल और उन गैर जिम्मेदारियों के हम पर पड़ने वाले असर के बारे में अब हम कहें भी तो किससे? माना के जीवन के सफर का एक मतलब पाना और खोना भी है। लेकिन ज़िन्दगी को देखने का एक नजरिया उसे एक आधा भरा गिलास भी तो है, जिसे हम अपने अपने नज़रिए से आधा भरा या आधा खाली मानते है। लेकिन मैं कुछ पाने की खातिर अपना सब कुछ खोने से भी पीछे नही हटी, फ़िर क्यूँ मेरे हाथ आई सिर्फ़ तनहाई और रुसवाई जो अपने साथ कई आंसू और तकलीफे लाई। क्या मुझे इस सफर में बस खोना ही होगा, अब जब सब कुछ खोकर कुछ पाने की आस लगी है तो क्या ग़लत किया है मैंने......? ईश्वर भले ही मेरी परीक्षा ले रहा है, क्यूंकि सोना तपती आग में जलकर ही कुंदन बनता है। लेकिन इसका मतलब ये तो नही की मुझे इस दुनिया में लाने वालों को भी मुझ पर तरस ना आए। आख़िर मैं कब तक दुसरो की खुशियों में अपनी खुशियों को तलाशते हुए अपनी आशाओं और उम्मीदों के साथ साथ अपनी चाहतो का भी गला घोटी रहूंगी ? वो क्यूँ नही समझते की मैं क्या चाहती हूँ? बच्चे तो खैर जानवर भी पैदा कर लेते है। तो इन्होंने कौन सा तीर मार लिया जिसका एहसान ये हम पर जताते रहते है। शरीर ढाक देने से और पेट भर देने से कोई माँ बाप नही बन जाता। कदम कदम पर बाप बन कर साथ चलना पढता है। माँ बन कर अपनी ममता की छाव में अपनी औलाद का लालन पालन करना पड़ता है। लेकिन ये बाते वो क्या समझेंगे जिन्होंने कभी औलाद को औलाद ही नही समझा....बस समझा तो बस समाज और बिरादरी में अपनी नाक को बचने और साथ ही ऊपर उठाने का मोहरा। बेटे माँ के करीब होते है तो बेटिया बाप के, फ़िर क्यूँ मुझे हमेशा डर और खौफ के साये में जी कर पिता के उस स्नेह से वंचित रहना पड़ा जिस पर मेरा बचपन से हक़ था। आगे आने वाली ज़िन्दगी में भी क्या मुझे अपनी खुशियों का गला ये कह कर घोटना होगा की माँ और बाप का कहा मानने में ही बच्चो की भलाई है। भले माँ बाप बच्चो को बच्चा न समझे। बच्चा अगर गलती करे तो उसे समझाना चाहिए न की उससे मुह मोड़ कर उससे जीने हा हक़ छीन लेना चाहिए। इसे माँ बाप की परवरिश तो क्या इंसानियत का नाम भी नही दिया जा सकता। अगर यही ज़िन्दगी का सफर है तो ऐसे सफर को तय करने का कोई फायदा नही है............<br /><br />रस्ते भर रो रो कर हमसे पूछा पाँव के छालो ने,<br /><span class="">बस्ती कितनी दूर बसा </span>ली, दिल में बसने वालो ने....hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1836226670766342266.post-82062600562337079892009-11-17T15:09:00.001-08:002010-03-08T21:11:12.881-08:00स्वयंवर या ईश्वर के फैसले का मज़ाक...?संगीता गुप्ता<br />रिश्ते तो आसमान से बनके आते हैं। किसकी शादी किससे होगी, कैसे होगी, कहाँ होगी? यह सब कुछ तो नियति ने पहले ही तय कर दिया होता है। जब शादी का समय आता है तो माँ-बाप को अपने बच्चों के लिए ज्यादा छानबीन नहीं करनी पड़ती, कि अपनी बेटी के लिये किसे सबसे अच्छा वर माने या कैसे अच्छे से अच्छा कुटुंब तलाशे....? क्योंकि हम सब जानते है, कि ईश्वर ने कहीं न कहीं हर किसी के लिए कोई न कोई जीवनसाथी ज़रूर बनाया है।लेकिन आज नियति<span class=""> के फैसले </span>का मज़ाक उड़ाने में हमने कोई कसर नही छोड़ी है। आज के दौर में स्वयंवर जैसी परम्पराओ के चलन दोबारा करके शादी-ब्याह को भददा लतीफा बनाया जा रहा है। पहले एनडीटीवी इमेजिन पर प्रसारित हुए राखी के स्वयंवर ने लोगो का काफी मनोरंजन किया। जिसमे राखी ने टोरंटो के इलेश परुजनवाला को अपना वर चुना। लेकिन सूत्रों द्वारा मिली जानकारी के अनुसार दोनों में सगाई के बाद अलग हो जाने की ख़बर चर्चा में है।राखी ने विचार, पसंद और पारिवारिक तालमेल के सही न बैठने को अलग होने का कारण बताया है। इसके बाद स्टार प्लस पर चल रहे परफेक्ट ब्राइड को ले लीजिये, इस रियलिटी शो में दस कन्याये और पांच कुंवारों की गुफ्तगू को परोसा जा रहा है। जिसको लेकर कन्याओं और कुंवर का आपस में कोई न कोई मतभेद होता ही रहता है। साथ ही रिश्तों के पारखी बने शेखर सुमन, अमृता राव और मलाइका अरोरा खान को ये रिश्तों की नजदीकियां बढ़ाने के तरीके लगते है, ऐसे में परफेक्ट ब्राइड मिले न मिले शो की टी आर पी ज़रूर बढ़ जाती है... लोग नाम और शोहरत कमाने के लिये क्या कुछ नहीं कर रहे है। इस शो के अन्तिम चरण के विजेताओं की एक सफल और शादीशुदा ज़िन्दगी की गारंटी कौन लेगा....? अब तो मनपसंद बहू चुनने में होने वाली स्पर्धा में सास भी पीछे नहीं हट रही है। ताकि भविष्य में होने वाली सास-बहू की नोंक झोंक में अभी के शो की बातों का ताना मारने से पीछे न रह जाए। अश्लीलता और रुसवाई के नाम पर इन दोनों शो में अभद्रता के नाम पर कोई कसर बाकी छोड़ दी थी जो अब राहुल महाजन भी अपने लिये एक बार फ़िर सुशील कन्या चुनने के लिये स्वयंवर पार्ट -२ लेकर अश्लीलता के अखाड़े में कदम रख रहे है। ये वही राहुल महाजन है, जिन्होंने बिग बॉस नाम के एक रियलिटी शो में अपनी पहली शादी के टूटने का कारण बनी अपनी महिला मित्र पायल रस्तोगी के साथ शो के द्वारा परोसी गई अश्लीलता को और बढ़ावा दिया था। फ़िर पायल के निकल जाने पर मोनिका बेदी का दामन थाम लिया था। साथ ही शादी के सपने भी सजा लिये थे और टीआरपी में चार चाँद लगा दिए थे। साथ ही इस शो के ख़त्म हो जाने के तुरंत बाद मोनिका को केवल दोस्त का नाम देकर अपना पल्ला झाड़ने में बिलकुल देरी नहीं की थी। फ़िर इस बात का यकीन कैसे किया जा सकता है, कि अब इस स्वयंवर द्वारा चुनी गई कन्या का साथ ज़िन्दगी भर पूरी ईमानदारी के साथ निभाएंगे। शादी का रिश्ता विश्वास और ईमानदारी की बुनियाद पर टिकता है। लेकिन यहाँ तो पहले से ही इस बुनियाद को हिला कर रख देने वाली सोलह हज़ार दो सौ पच्चीस कन्यायो की गिनती हो चुकी है। साथ ही शो पर होने वाली रंगरेलिया और शोहरत कमाने के हथकंडे आगे जाकर विश्वास के आधार तक को बनने के लिए काफी होंगे...? क्यों हम भूल <span class="">जाते </span>है की नियति के नियमो के पालन न करके और ईश्वर के किए गए फैसले के अपमान करके हमें कुछ हासिल <span class="">नहीं होगा। </span>बात बात भड़क उठने वाला हिंदू समाज हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठा है? क्या उसे हिंदू धर्म का उड़ता हुआ मज़ाक दिखाई नही दे रहा है? हिंदू संगठन अपनी आँखे बंद किए क्या अपने उत्तरदायित्वों को ढंग से ना निभाने पाने की स्थिति को साबित नही कर रहे है। यह कन्याये जो आज शरीर को ढकने से ज्यादा उसके प्रदर्शन में विश्वास करती है, क्या इनसे किसी भी कुल की मान मर्यादाओ और घर की इज्ज़त को कायम रखने की आशा मात्र भी की जा सकती है....? हर घर सीता जैसी सुशील बहु की कामना करता है। लेकिन इसे सीता की पदवी तो क्या उनके नाम से भी नही नवाजा जा सकता। नारी का अमूल्य गहना होती है उसकी आँखों की हया और तन को ढक कर रखी जाने वाली लज्जा। लेकिन इनसे इनकी कामना करना तो क्या ऐसा सोचना भी पाप है। कब जागेगा समाज और कब जागेंगे हम............. सब्र की अग्नि परीक्षा से गुजर जाने के बाद या पानी के सर से ऊपर चले जाने के बाद ....? इन रियलिटी शो में जो कन्यायें हार जाएगी क्या उन्हें कोई भी घर या परिवार क्या बहु के रूप में स्वीकार कर पायेगा? तो फिर ये सब कुछ जो यहाँ ये लड़कियां कर रही हैं इन्हे कौन रोकेगा...? ऐसे में एक सभ्य और कीर्तिमान भारत की कामना करना ग़लत है।hamarbanihamargothhttp://www.blogger.com/profile/00400544461579509591noreply@blogger.com0