कल आज और कल

आज करीब डेढ़ साल बाद दिल्ली में वापस कदम रखा | यूँ लगा मानो ज़िन्दगी बैलगाड़ी की रफ़्तार छोड़ कर मेट्रो पर उतर गई है, मन फिर चंचल हो गया और तैयार हो गया हवा से बाते करने को | कितना कुछ बदल गया है यहाँ... लेकिन मन में एक सुकून सा है | भले ये सुकून केवल सात दिनों का है | उसके बाद फिर रायपुर वापस लौटकर बैलगाड़ी की चाल चलना है | रायपुर जाने के बाद कभी सोचा नहीं था, कि दिल्ली फिर आना नसीब होगा | सच कहूँ... तो अब रायपुर में रहने का दिल नहीं करता, कारण  एक नहीं के हैं | दिल्ली आने से पहले भी मैं खुद से इसी विषय पर तर्क वितर्क कर रही थी कि, रायपुर छोड़ने का मन  तो बना लिया है, पर आगे कहाँ जाना है ? और क्या करना है ? दिल्ली की गलियों में फिर से धक्के खाने है या मुंबई जाकर एक और मेट्रो में किस्मत को आज़माना है | मगर अब तक नतीजे पर नहीं पहुँच पाई हूँ..... | नतीजे पर कभी दिल नहीं पहुँचने देता है तो कभी दिमाग | किसी भी बारे में कुछ भी सोचने या करने से पहले कई तरह से अपने आपको टटोलना पड़ता है | ये बड़ा ही कठिन दौर होता है , लेकिन सभी मनुष्यों के जीवन में  ऐसे दोराहे  कई बार आते हैं | लड़की हूँ इसीलिये घरवालो के नज़रिए को भी देखना और समझना पड़ता है |  पर अब व्यक्तिगत रूप से कुछ कर दिखाने का समय आ गया है |  कुएं की मेंढकी  बन कर अब मैं नहीं जीना चाहती | जीवन में कुछ कर गुजरने का ज़ज्बा जो मेरे अन्दर है उसे अब मैं सबके सामने लाना चाहती हूँ | मुझे लगता है,  कि अब  वो समय आ गया है | अब तक ज़िन्दगी में कई समझौते कर चुकी हूँ | अब अपना फैसला खुद लेने का वक़्त है, जिसमें मैं किसी की नहीं सुनूंगी....पर दिल और दिमाग में  द्वंद्व युद्ध जारी है |  मुझे भी इंतज़ार है उस नतीजे का | जिसमें ईश्वर की  भी स्वीकृति हो |