भरोसा या विश्वासघात, भावनाओं का भददा मजाक...


रो कर पूछने और हँसकर उड़ा देने वाले लोगों की इस दुनिया में किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता। कहने को तो यहाँ कई रिश्ते है जैसे- माँ, बाप, भाई और बहन। इनके अलावा भी हम कई रिश्तों में बंधे है लेकिन इतने रिश्तों की भीड़ होने के बावजूद हम दुनिया में बिलकुल अकेले है। इस बात का इल्म हम सभी को एक -न- एक दिन ज़रूर होता है। कोई आपका नहीं होता आपका साथ केवल आपको ही निभाना पड़ता है। ज़िन्दगी; वक़्त की कसौटी पर बिछी शतरंज की उस बिसाद की तरह है, जिसमें खुद ज़िन्दगी ही हमें मिले रिश्तों को रिश्तों को गोटियों की मिसाल देकर हमें समाज के नियमों से झूझने के लिये छोड़ देती हैअब तो यह हाल है कि किसी को दिल कि बात बताने से पहले सौ बार सोचना पड़ता है। वो कहते है ना... कि दूध का जला हुआ छाज को भी फूंक फूंक कर पीता है। बावजूद इसके कि कुछ रिश्ते वास्तविकता से कोसो दूर होते है। और जिन्हें जिन्दादिली से जिया जाता है कभी कभी सोचने को मजबूर होना पड़ता है, कि ज़िन्दगी को हम चलाते है या ज़िन्दगी हमें चलाती है अक्सर परिस्थितयां ऐसी भी हो जाती है की मर्ज़ी हो या ना हो, ज़िन्दगी के हाथों की कठपुतली सभी को बनाना पढ़ जाता है। लेकिन क्या किसी की भावनायो का कोई मोल नहीं है। भगवान ने हमें जितनी सांसे दी है उससे कहीं ज्यादा भावनाएं दी है। जितना समझाने की कोशिश करती हूँ, उतना ही उलझती चली जाती हूँ। जिंदा लाश की तरह जीवन जीने से अच्छा है कि कठपुतली बन निशब्द खड़ी सब देखती रहूँ।

2 Response to "भरोसा या विश्वासघात, भावनाओं का भददा मजाक..."

  1. Randhir Singh Suman says:
    March 2, 2010 at 8:38 PM

    nice

  2. ajay saxena says:
    March 3, 2010 at 4:09 AM

    रात नहीं ख्वाब बदलता है,
    मंजिल नहीं कांरवा बदलता है
    जज्बा रखो हर दम जीतने का
    क्योंकि किस्मत चाहे बदले या न बदले
    पर वक्त जरूर बदलता है ।

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