जलन नहीं बराबरी करो..

क्या कभी ये जानने की कोशिश की है............कि
बंद मुठ्ठी और खुले हाथ में क्या फर्क है ?
ईश्वर के सृष्टि बनाने और मानव को जीवन देने के पीछे क्या तर्क है........... ??

ईश्वर ने हमें ज़िन्दगी; जैसा अनमोल तोहफा देने के बाद भी हम सभी को कोई न कोई एक खास खूबी देकर हमें एक दूसरे से अलग बनाकर अपनी रहमत से भी नवाज़ा है। इस सच्चाई से वाकिफ़ होते हुए भी हम उसकी इनायत की कद्र नहीं करते। आगे बढ़ने की बजाये दूसरो को पीछे धकेलने और उनसे जलने में लगे रहते है। भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में इतना वक़्त ही कहाँ है, कि हम दूसरों के बारे में ज़रा भी सोच सके। लेकिन यह सब सोचने कि बजाए हम दूसरों से जलने का काम करते है। फिर न जाने कब यह जलन अन्दर ही अन्दर कुढ़न बन जाती है और हमें पता ही नहीं चलता। ऐसे हाल में आगे बढ़ने की बात के बारे में सोच पाना भी मुश्किल हो जाता है। शायद हम जलन के मारे यह भूल जाते है कि कौआ चाहे जितना भी काक ले, कभी कोयल नहीं बन सकता।

"इंसान" सृष्टि कि सबसे बड़ी संरचना है, जिसमें सिक्के के दो पहलुओं कि तरह खूबियों के साथ साथ खामिया भी है। आज उसे यह पता नहीं शायद, कि दुनिया को जैसी नज़र का चश्मा पहन कर देखोगे; दुनिया वैसी ही नज़र आएगी। यह समाज चाहे जैसा भी हो है तो हमारा ही और इसे अच्छा या बुरा बनाना भी तो सिर्फ और सिर्फ भी हमारे ही हाथों में है।

2 Response to "जलन नहीं बराबरी करो.."

  1. 36solutions says:
    February 22, 2010 at 7:22 PM

    धन्यवाद संगीता जी.

  2. 36solutions says:
    February 22, 2010 at 7:23 PM

    अपने ब्लाग को हिन्दी फीड एग्रीगेटरो मे पंजीयन कराकर विश्वव्यापी पाठक लावे.

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