बुद्धू बक्सा यानि कि लोगो को आसानी से बुद्धू बना कर अपने वश में कर लेने वाला जादुई बक्सा जिसके न तो असर को कम किया जा सकता है और ना ही उसके दूरगामी असर से बचा जा सकता है। ये जादुई पिटारा ऐसा है जो सब को सभी की उम्र और सभी के अंदाज़ में उन्हें अपनी ओर खींचता है। एक डोर से जैसे पतंग खींची चली जाती है उसी तरह इसके बिछाए जाल से निकला नही जा सकता। एक तरफ़ बच्चे कार्टून देखकर खुश होते है तो वहीं लड़के-लड़किया फैशन के नए प्रचलन को देखकर अपने ऊपर भी लागू करती है। महिलाये भी इससे मोहित होने से बच नही पाती है। किस कलाकार की शादी कितनी बार हुई, किसकी सास ने बहू पर साजिश का कौन सा वार किया, उनका पूरा दिन यही हिसाब-किताब करने में चला जाता है। जहाँ एक तरफ़ शाम को थक हारकर घर आए पति से पानी पूछकर पूरे दिन का हाल जान उनकी थकान दूर करने के लिए उनके साथ चाय की चुस्किया लेते हुए प्यार के दो मीठे बोल बोलती थी, वहीँ आज के समय में पानी देना तो दूर उनकी ओर निहारती तक नही है। पति के कुछ कहने या पूछने पर सीरियल में ब्रेक आने का बहाना करती है। पति के भड़क जाने पर उनका दो टूक सा जवाब होता है कि - मेरी दो पल की खुशी भी बर्दाश्त नही कर सकते। ऐसे में भारतीय संस्कृति जहाँ विलुप्त होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा । ये लड़किया फैशन की वशीभूत होकर दूसरी ओर लडको को भी सम्मोहित कर रही हैं। दूर दर्शन तो आज भी वहीँ खड़ा है, जहाँ से उसने शुरुआत की थी, उसके सामने पैदा हुए और चलना सीखे चैनलों ने लम्बी लम्बी छलांग भर इतनी दूर निकल गए हैं कि दूरदर्शन वहां तक सोच भी नहीं सकता। खैर दूरदर्शन अश्लीलता में भी पीछे है। संस्कृति की फिक्र है उसे आज भी। लेकिन बाकी के चैनल अपनी टी आर पी बढ़ाने के लिए अश्लीलता की हदों को काफी पीछे छोड़ चुके हैं। चैनलों की इसी साज़िश से लगता है कि हमें घरघुसरा बनाने की साजिशें हो रही हैं और हमें इससे बचना ही होगा।
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