वक़्त के थेपेड़े क्या कुछ देखने और सहने पर मजबूर नहीं कर देते l कभी - कभी तो सोचने पर विवश होना पड़ता है कि ऐसा भी कुछ हो सकता है भला........? जैसे - जैसे समय का पहिया चलता है, इंसान जीवन को संघर्ष करता हुआ उसी समय में जीता है l एक इसी आस में... कि रात के बाद सवेरा जरूर होता है l मगर कोई कब तक बर्दाश करे...? एक दिन तो सब्र का बाँध टूट ही जाता है l तब ज़िन्दगी एक बोझ से कुछ कम नहीं लगती, और ऐसे में हम भगवान् को कोसते है l बावजूद यह याद रखने के, कि भगवान् तो हमेशा हमारे साथ है l बस दिखाई नहीं देते l वो भी तो जानना चाहते है, कि मुसीबत की घड़ी में हम उनपर कितनी श्रद्धा बनाये रखते है ?? वक़्त अपनी गति से चल रहा है, और उसके साथ ही साथ हम अपनी l ऐसे में सबसे ज्यादा तकलीफ तब होती है, जब बेगानों की भीड़ में हमारे अपने भी हमारा साथ छोड़ते देखाई देते है l और गैर आपका साथ निभाते है l ऐसे में मन में एक सवाल टीस मरता है, कि क्या हमारेअपने केवल सुख के साथी है, दुःख में कोई किसी का नहीं होता........?
पर वो इंसान ही क्या जो जीवन से हार जाये..... संघर्षों का नाम ही तो ज़िन्दगी है l जब काले घने अंधेरो के बीच कोई राह नज़र ना आये, तब सब कुछ परमात्मा पर छोड़ देना चाहिए l बावजूद इसके की जीवन को खत्म करने पर उतारू हो जाना चाहिए l जीवन तो चलते रहने का नाम है l चाहे हवाओं का रुख़ हमारी ओर हो या न हो l
ख़ैर............इन्सान की ख्वाइशों की कोई इन्तहां नहीं होती l
दो गज़ ज़मीन चाहिए, दो गज़ कफ़न के बाद l
पर वो इंसान ही क्या जो जीवन से हार जाये..... संघर्षों का नाम ही तो ज़िन्दगी है l जब काले घने अंधेरो के बीच कोई राह नज़र ना आये, तब सब कुछ परमात्मा पर छोड़ देना चाहिए l बावजूद इसके की जीवन को खत्म करने पर उतारू हो जाना चाहिए l जीवन तो चलते रहने का नाम है l चाहे हवाओं का रुख़ हमारी ओर हो या न हो l
ख़ैर............इन्सान की ख्वाइशों की कोई इन्तहां नहीं होती l
दो गज़ ज़मीन चाहिए, दो गज़ कफ़न के बाद l
May 24, 2010 at 12:38 PM
हम भगवान् को कोसते है l बावजूद यह याद रखने के, कि भगवान् तो हमेशा हमारे साथ है l बहुत अच्छी लाइन। हम सब जानते हैं पर न जाने क्यों समझ नहीं पाते। अच्छी बात।
May 24, 2010 at 7:23 PM
जीवन तो चलते रहने का नाम है l चाहे हवाओं का रुख़ हमारी ओर हो या न हो...
-प्रेरक!
June 18, 2010 at 6:53 AM
achchha likh raha hai motu aajkal..badhaee.
June 18, 2010 at 6:56 AM
achchaa likh raha hai motu aajkal. chalo kuchh to seekhi . badhaee.main bhi kuchh aisa hi likhne ki sochta hun to practicaly chheezen aade aa jati hain.